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लेख |
(१) ओम् संवत् ३० गच्छे राजकुले सूरिरभूच ( द )(२) भयचंद्रमाः [] तच्छिष्यो मलचंद्राव्य [स्त ](३) त्पदा (दां) भोजषट्पदः [ ॥ ] सिद्धराजस्ततः ढङ्गः (४) ढङ्गादजनि [ च ]ष्टकः । रल्होति गृ[िहण] [त(५) स्य ] पा - धर्म - यायिनी । अजनिष्ठां सुतौ । (६) [ तस्य ] [ जैन ] धर्मध ( प )रायणौ । ज्येष्ठः कुण्डलको (७) [ भ्र ] [ ता ] कनिष्ठः कुमराभिधः । प्रतिमेयं [ च ] (८) - जिना नुज्ञया । कारिता [ ॥ ]
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भाषांतर |
ओम् ३० वें वर्ष में +
राजकुलगच्छ में अभयचंद्र नाम के आचार्य थे कि जिन के शिष्य अमलचंद्र हुए | उन के चरणकमलों में भ्रमर के समान सिद्धराज था । उस का पुत्र ढंग हुआ । ढंग से चष्टक का जन्म हुआ । उस की स्त्री राल्ही थी।उस के धर्मपरायण ऐसे दो पुत्र हुए जिस में से बडे का नाम कुण्डलक था और छोटे का कुमार । ..... 1. की आज्ञा से यह प्रतिमा बनाई गई है ।.....
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[ नोट:- इस लेख की लिपि प्राचीन शारदा- लिपि है और बैजनाथप्रशस्ति की लिपि से बिल्कुल मिलती हुई है इस लिये इस में बताया गया लौकिकसंवत् ३०, कदाचित् इ. स. ८५४ हो सकता है । गच्छ ' शब्द ऊपर से जाना जाता है कि अभयचंद्राचार्य श्वेताम्बर थे परंतु पट्टावलियों में ' राजकुल ' मिल नहीं सकाi ]
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+ सुप्रसिद्ध जैनतर्क ग्रंथ " सम्मतितर्क " के प्रसिद्ध टीकाकार तर्कपंचानन श्रीमदभयदेवसूरि राजगच्छ ही के आचार्य थे । क्या यही अभयदेवसूरि तो, इस लेख वाले अभयचंद्राचार्य न हों ? विद्वानों को चाहिए कि इस विषय में विशेष खोज करें।
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