SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेख में पढ़ा था-यह मूर्ति प्रथम संसारचंद्र राजा के राज्य में संवत् १५२३ (सन् १४६६ ) में, बनाई गई थी। दूसरे मंदिर में आदिनाथ की बड़ी मूर्ति स्थापित है। इस के नीचे घिसा हुआ कुछ अस्पष्ट लेख है।" ".........(काँगड़ा शहर में इन्द्रेश्वर के मंदिर की) दक्षिण ओर एक दूसरा कमरा है जो पूर्व का असली मंदिर होना चाहिए। जनरल कींगहाम के वर्णन मुताबिक, इस के अंदर जाते समय दोनों तरफ दो जिनमूर्तिये दिखाई पड़ती हैं। .........इन में से एक ऊपर सप्तर्षि अथवा लौकिक संवत् के ३० वें वर्ष का शिलालेख है। डॉक्टर बुल्हर, जिन्हों ने इस लेख को प्रकट किया है, के कथ. नानुसार, इस लेख की लीपि, (कीरग्राम की) वैजनाथ-प्रशस्ति की लीपि से मिलती-झूलती है इस से सन् ८५४ में यह लेख लिखा गया होना चाहिए।" जिस लेख का इन ऊपर के अवतरणों में जिक्र किया गया है वह लेख डॉक्टर बुल्हर ( G. Buhler, Ph. D., L. L. D. C. I.E.) ने एपिग्राफिआ इन्डिका के प्रथम भाग में ( Epigraphia Indica, Vol. I, XVIII.) संक्षिप्त नोट के साथ प्रकट किया है जिस की नकल यहां पर दी जाती है। कांगड़ा-बाजार में पार्श्वनाथ-प्रतिमा का जैन लेख । नीचे दिया हुआ आठ पंक्तियों का शिलालेख, काँगडा-बाजार में आये हुए इन्द्रवर्मा के हिन्दु-मंदिर की कमान में रक्खी हुई एक पार्श्वनाथ की प्रतिमा की गद्दी ऊपर खोदा हुआ है। xतेल और सिन्दुर से यह लेख इतना दब गया है, कि जिस से इस के बहुत से अक्षर बिल्कुल नहीं दिखाई देते । अंतिम पंक्ति सर्वथा नष्ट हो गई है। इस मूर्ति को लोक भैरव की मूर्ति समझ कर तैल और सिंदूर द्वारा इस की पूजा किया करते हैं। इस पर तैल और सिंदर का इतना दल चढ गया है कि जिस से मूर्ति के बहुत से अवयव बिलकुल दबसे गये हैं। इसी सबब से लेख के अक्षर भी ठीक ठीक नहीं पढे जा सकते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy