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संवत् १५६६ और शक १४१३ है जो दोनों इ. स. १५०९ के बराबर होती है । इस के प्रारंभ में
" ओम् स्वस्ति श्रीजिनाय नमः " इस प्रकार जिन को नमस्कार किया गया है+"
“काँगड़ा गांव में सब से प्राचीन मंदिर इंद्रेश्वर का है जो राजा इंद्रचंद्र का बनाया हुआ कहा जाता है । यह राजा काश्मीर के राजा अनंतदेव के समकालीन होने से इ. स. १०२८ से १०३१ के मध्य में विद्यमान होगा। यह मंदिर बहार से मात्र ९फीट और २ इंच चौरस है । इस के दरवाजे के आगे एक कमान है जो चार स्तंभों के आधार पर टिकी हुई है। इस मंदिर के अंदर का और कमान का भू-तल, बहार की जमीन से २ फीट नीचा है जो यह बताता है, कि मंदिर के बने बाद इतनी जमीन ऊपर को चढ गई है। मंदिर के मध्य में एक सामान्य लिंग स्थापित किया हुआ है । परंतु, कमान के बहारी भाग में अगणित मूर्तिये, पंक्तिबद्ध स्थापित कर रक्खी हैं । इन में दो मूर्तिये, जो जैनों की है, बहुत ही प्राचीन हैं । इन में की एक मूर्ति बैठी हुई पुरुषाकृति की है जिस के दोनों हाथ खोले में रक्खे हुए हैं। इस की गद्दी पर वृषभ की आकृति खींची हुई है जो आदिनाथ का लांछन गिना जाता है । नीचे के भाग पर ८ पंक्तियों का लेख है जिस के प्रारंभ में “ओम् संवत् ३० गच्छे राजकुले सूरि"-ये शब्द हैं । अक्षरों के आकार पर से मैं समझता हूं कि यह लेख १० वीं अगर ११ वीं शताब्दी का है। इस से इस की मिति
+ यह दोनों लेख विज्ञप्तित्रिवोण के समय के बाद के हैं इस से मालूम होता है, कि अन्य स्थानों की तरह काँगडा में भी समय समय पर नई नई प्रतिमायें और देवालय बना करते थे । इस से यह भी ज्ञात होता है कि वहां पर जैनसमुदाय की संख्या सामान्य नहीं पर विशेष रूप से थी।
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