________________ [गाथा 15-22] ज्ञानदीपकाल्यं तह पढम बीय तइआ वण्णा वुच्चंति तिण्णि कालाई / मा इत्थ करह भंती जहसंखं सयलवग्गाणं // 15 // तथा समस्तवर्गाणां प्रथम-द्वितीय-तृतीयवर्णाः यथासंख्यं त्रीन् कालान् ब्रुवन्ति / अत्र मा भ्रांतिं प्रकुरुतेति // 15 // आलिंगिएहिं मुक्कइ वाहिं अहिधूमिएहिं ण हु रोई। अहवा चिरेण कटुं दड्डो मरणं पयासेइ // 16 // आलिंगितैाधि रोगी मुंचति, अभिधूमितैन मुंचति, अथवा चिरेण कष्टात् मुंचति, दग्धश्च मरणमेव प्रकाशयति // 16 // विसमा दाहिणपासे वामे य वणं समा य पयडंति / वण्णा पण्हे पडिया पंचमया बेवि पासंमि // 17 / / प्रश्ने पतिता विषमाः प्रथम-तृतीयवर्णा दक्षिणपार्श्वे तथा समाः द्वि-चतुर्थी वर्णाः वामपार्थे पंचमका वर्णाः उत्तरपार्श्व व्रणं प्रकाशयन्ति // 17 // अट्ठ सिरो-मणि-वयण-हियय-कडि-उरु-जाणु-चरणजुयलेहिं / पण्हविलग्गा वग्गा वणाई दरिसंति जहसंखं // 18 // अष्टौ वर्गाः प्रश्नविलब्धाः यथासंख्यं शिरोललाटवदनेषु] तथा हृदय-कटि-ऊरु-जानु-15 चरण-युगलेषु व्रणा निदर्शयन्ति // 18 // अणिलय-पित्तय-सेफय-संसग्गय आहिधाययं रोगं / पयडंति पंचवग्गा जहसंखं पढम उद्दिट्ठा // 19 // प्रथमोदिष्टाः पंचवर्गाः यथासंख्य अनिलजं पित्तजं श्लेष्मजं संसर्गजं अभिघातजं रोगं प्रकटयन्ति // 19 // अइमंद-मज्झ-दारुणपीडाई दिति पण्हपडिआई। आलिंगियाहिधूमियदड्डा वण्णा जहासंखं // 20 // आलिंगिताभिधूमितदग्धा वर्णाः प्रश्नपतिता यथासंख्यं अत्यन्तमन्दमध्यदारुणां पीडां प्रकटयन्तीतिः // 20 // आलिंगिएहिं संधी ण हु संधी विग्गहे(हो) ण अहरेहिं / अहराहरेहिं कहिओ समरो सुहडाण णासयरो // 21 // आलिंगितैः संधिर्भवति, अधरैर्न च संधिर्न च विप्रहः, अधराधरैः संग्रामः सुभटानां नाशकर इति // 21 // विजयं उत्तरवण्णो ण जयं ण पराजयं वि अहरेहिं / अहराहरो पयासइ पराजयं णत्थि संदेहो // 22 // उत्तरो वर्णो विजयं प्रकाशयति, अधरो वर्णो न जयं न पराजयं, अधराधरश्च पराजयमेवेत्यत्र नास्ति संदेहः॥ 22 // नि० आ०१२ (105) Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org