________________ चूडामणिसारशास्त्रम् / [गाथा 23-29] जइ पढमक्खरमहरं अवसाणे उत्तरक्खरं पण्हे / ता उत्तरो सुबलिओ विवरीओ ताण विवरीयं // 23 // जयपराजयप्रश्ने यदा प्रथमाक्षरमधरं अवसाने च उत्तरमक्षरं भवति तदा उत्तरो बली भवति // 23 // पढमसरेण य जुत्ता पण्हे मत्ताविवज्जिया वण्णा / अणभिहिअणामआ दे पअडंति य जीवचिंताई // 24 // प्रथमस्वरेण युक्ता अन्यमानाविवर्जिता वर्णाश्च ते प्रश्ने अनभिहितनामका भवंति ते च जीवचिंता प्रकटयन्ति // 24 // ससि-तइअ-पंच-सत्तम-नवमसरा रुद्दसंखसरसहिया / क-च-टा पंचमहीणा सहिया य-स-हेहिं जीवक्खा // 25 // प्रथम-तृतीय-पंच-सप्तम-नवमाः स्वराः एकादशस्वरसहिताः, तथा कवर्ग-चवर्ग-टवर्गाः पंचमहीनाः, यकार-शकार-हकारसहिता एते एकविंशतिवर्णाः जीवाख्या भवन्तीति // 25 // बीओ छट्ठो सरओ सविसग्गो तह व-सक्खरोपेओ। तह उण पंचमहीणा त-पवग्गा धाउणामा उ // 26 // द्वितीयः षष्ठः स्वरः, सविसर्गः, तथा वकार-सकारोपेतः, तथा पुनस्तवर्गः पवर्गः पंचमहीन एते त्रयोदशवर्णा धातुनामका भवन्ति // 26 // ई ऐ औ सरजुत्ता र-ल-षा ङ-ञ-ण-न-माइं वण्णाई / एआरह मूलक्खा पयासिया जिणवरिंदेण // 27 // चतुर्थाष्टमदशमस्वरयुक्ता र-ल-षकारा ङ-ब-ण-न-माश्चेत्येकादश वर्णा मूलाक्षरप्रकाशका 7 भवंतीति / एतेनैतदुक्तं भवति लाभप्रभे धातुलाभः, मूलाक्षरैर्जीवलाभः, धात्वक्षरैर्जीवाक्षरैर्मूललाभ इति नात्र कार्या विचारणा // 27 / / मुट्ठीजीवक्खरए मूलं जीवं वि मूलअक्खरए / धाउं उण जाणिजह धाउक्खरएण किं चोज्जं // 28 // मुष्टौ जीवाक्षरैर्मूलं ज्ञातव्यम् , जीवं च मूलाक्षरैः, धातुं धात्वरैरेवेति किमित्याश्चर्यमिति // 28 // बहुपढमवग्गवण्णा अह बहुबिंदू विसग्गसंजुत्ता / बहुवन्ना जह पण्हे ता सुन्नं मुट्ठिचिंताई // 29 // प्रमे यदि बहवः प्रथमवर्गवर्णा भवन्तीति, अथवा बहुबिंदुविसर्गसंयुक्ता भवन्ति, अथवा प्रभा एव बहवो भवन्ति तदा मुष्टिचिन्तायां शून्यं भवति // 29 // 1. जीवखरा। (106) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org