________________ 88 चूडामणिसारशास्त्रम् / [गाथा 7-14] अहरसरेहि जुत्ता ते दड्डा हुँति अहरअहरतमा / कजाइं साहंति सुअ(इ)रं अधमा अधमाइं किं बहुणा // 7 // अधरसंज्ञकैः स्वरैः संयुक्ता दग्धा वर्णा अधराधरतरसंशका भवति / ते च सुचिरकालेन अधमाधमानि कार्याणि साधयन्ति किंबहुनेति / / 7 // दडसरेहिं जुत्ता दड्डतमा हुति दड्डया वण्णा / ते णासयंति कजं बलाबलं मीसयेसु सयलेसु // 8 // दग्धसंज्ञकैः स्वरैः संयुक्ता दग्धसंज्ञका वर्णा दग्धतमसंज्ञका भवन्ति तेषां बलत्वान्नि:फलं भवति // 8 // आलिंगिएहिं पुरिसो महिला अहिधूमिएहिं सबेहिं / दड्डेहिं होइ संढो जाणिज्जइ पण्हपडिएहिं // 9 // आलिंगितैर्वर्णैः प्रभे पतितैः पुरुषो भवति / अभिधूमितैः स्त्री। दग्धैनपुंसकमिति जानीतेति // 9 // जइ वग्गाण य वण्णा पढम-बीय-तीय-चउत्थ-पंचमया / तह विष्प-राय-वयसा सुद्दो विय संकरा य सयलाई // 10 // यदि वर्गाणां वर्णाः प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चतुर्थ-पंचमकाः, तदा विप्र-राजन्य-विद-शूद्राः, // अपि च संकरजातयः सर्व एव भवन्तीति // 10 // एदेहिं वण्णेहिं कमेण बालो कुमारओँ तरुणो। मज्झिमवयो वि थविरो जाणिज्जइ पण्हपडिएहिं // 11 // तथा एतैरेव वर्णैः प्रभे पतितैः क्रमेण बालः कुमारस्तरुणो मध्यमवया वृद्धश्च भवतीति जानीहि // 11 // आलिंगिएहिं विट्ठी मज्झा अहिधूमिएहिं सा होइ / दड्डेहिं णत्थि विट्ठी जिणवयणं सच्चियं जाण // 12 // थालिंगितैर्वृष्टिः, अभिधूमितैर्मध्यमा वृष्टिः, दग्धे नास्ति वृष्टिरिति जिनवचनं सत्यमेव जानीहिं॥ 12 // अइउप्पज्जइ सस्सं पण्हे आलिंगिएहिं वण्णेहिं / अहिधूमिएहिं किंचण णासइ दड्डेहिं णो चित्तं // 13 // अतिशयेनोत्पद्यते सस्यं प्रश्ने आलिंगिर्वणः, अमिधूमितैः किंचिदुत्पद्यते, दग्धैर्नश्यति, अत्र नो चित्रमिति // 13 // संपदिकालं पण्हे वण्णो आलिंगिओं पयासेइ / अहिधूमिओ वि भूअं दड्डो उण भावियं णूणं // 14 // " प्रभे आलिंगितो वर्णः संप्रतिकालं प्रकाशयति / अभिधूमितोऽपि भूतम् / दग्धः पुनर्भाविकालं नूनमिति // 14 // (104) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org