________________ जयपाहुडनाम निमित्तशास्त्रम्। [गाथा 358-365] एतेसु पए प० 223 पा० २)सेसुं, एतेभि अभिहएहि वग्गेहिं / मसयं तिलयं सत्थ-क्खयं च कमसो वियाणाहि // 358 // सिर(शिरः)प्रभृतयो ये प्रदेशा यैरक्षरा(रै)रुक्ताः तैरनि(न)भिहतैः अधिकैः प्रश्(भे) स प्रदेशो निरुपद्रवो वक्तव्यः / अभिहतैरुपरु (द्र)वयुक्तः। चचा(?शस्त्रा)भिघातस्तु(स्त्रि)विधः / तत्र 'तैर्वर्गाक्षरैरालिंगितैः मस(श)कं तिलकं च वक्तव्यम् / अभिधूमितैब्राह्मणं (णैर्बणं) दग्धैस्तु स(श)स्त्रप्रहारः तत्र प्रदेशे वक्तव्यः // 358 // भणिएहि वयणदेसे, वग्गेहि य अभिहएहि जाणिज्जा / मसय-तिलयाइ सवं, चिण्हं गुरुप(ज्झप्प)एसेसु // 359 // वदने यानि[५० 224, पा० 1] चिह्नानि अभिह (हि)तानि तैरभिहतैरक्षरैस्तानि मशकतिल"कादीनि गुह्यप्रदेशे ज्ञेयानीति / / 359 // // अस्त्र विभागप्रकरणमंगस्य // सत्तम-णवमो य रवी, चंदो वि य होइ पढम-तइएणं / भोमो बीय-चउत्थे, पंचम-छट्ठो य ससिसुओं भणिओ // 360 // सप्तमखर एकारः, णवम उ(ओ)कारः / एतौ सूर्यस्य / चन्द्रः प्रथम-तृतीयैः 'अ'भौमो . द्वितीय-चतुर्थैः 'आई' / बुधः 'उ ऊ' // 360 // एक्कारस सूरसुओ, जीवो दसमे य अट्ठमे सुक्को / बारसमो वि य राहू, एते सरसामिया भणिया // 361 // अं शनिः / औ गुरुः / शुक्र ऐ / अः [प० २२४,पा० 2] राहुः। खराणां सा(स्वामित्वं प्रहाख्यातं तन्नामप्रतिबद्धवस्तूपचयापचयोदया-स्तमन-जया जयोत्पातादिना ज्ञेयाः // 361 // // स्वरक्षेत्रभवनम् // रवि-भीम-सुक्क बुह-गुरु-सणि-य(च)दो राहु अट्ठमो एते / अक च ट त प य श वग्गाण होति खेत्ताहिवा णिययं // 362 // अ क च ट त प य श वर्गाणां ग्रहाः क्षेत्राधिपा उक्ताः / तत्प्रतिबद्धाक्षरवस्तुहैः अस्तमिदा(मना)विहासवृद्धिज्ञेया इति // 362 // पण्हक्खरसत्तमु(गु)णं, तिहिसहियं उ(ओ)मरत्तपरिसुई / मत्त(सत्ते)हि भागसेसे, सुजा(जा)इ[५० 225, पा० १]गहा मुणेयबा // 363 // सुन्नं छएण वा (च?)उरो, तिणि य दो तह य रूवमिकं तु / सूरादीणं एते, उमा(ऊसा?) संझा तहा कमसो // 364 // दिनकरानयनम् // 363 -364 / / छाया रासी होरा, पण्हक्खरयं च होइ तीसगुणं / पक्खो वा तिण्णि सया, सट्ठासतिहि(?) तं सबं // 365 // (100) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org