________________ [गाथा 352-357] प्रश्नव्याकरणाख्यं जीव-धातु-मूलाक्षरैः पूर्वोक्तैर्जीवधातुमूलयोनिनिर्देशकार्यः(य?) मात्राभिर्द्रष्टव्यम् / रूपं शुक्लं कृष्णं पीतं रक्तादि / लक्षणं दीर्घमल्पं वृत्तं इति / जीव-धातु-मूलोत्तराधरैः पंचभिर्भेदः प्रश्नाक्षराणां निरूपयितव्यो वर्गप्रतिबन्धः // 351 // [प० 220, पा० 2] पढम-तइए य चरिमा, वग्गा पासंडिया तहा भणिया / सेसा य अपासंडी, णिहिट्ठा पण्हइत्तेहिं // 352 // प्रथम-तृतीय-पंचमवर्गाणां अन्यतमबहुले प्रश्ने पाखंडिनो ज्ञेयाः। के ते ? प्रत्रजिताः अरहन्तादयः आजीविकादयश्च / शेषाणां द्वितीय-चतुर्थ-वर्गाक्षराणां अन्यतमाधिके प्रभे अपाखंडिनो ज्ञेयाः / [प० 221, पा० 1] अपाषंडिन इति गृहस्था भण्यन्ते / / 352 // पढमो वग्गो पासंदाहिण (दाहिणपासं?) बिइ(ई)य एव चउत्थे य। रा(वा)मं तइए मज्झं, दो पासे पंचमं जाण // 353 // प्रथमवर्गाक्षरबहुले प्रश्ने तैरेव प्रथमवर्गाक्षरैरनभिहतैर्दक्षिणपार्श्वे पुरुषस्य लांछनं ज्ञेयम् / अनभिहतैः स(श)स्वप्रहार इति / द्वितीय-चतुर्थवर्गाक्षराणामन्यतमबहुले [प० 221, पा० 2] प्रभे तैरेव द्वितीय-चतुर्थवर्गाक्षरैरनभिहते वामपार्श्व लांछनं प्रत्येतव्यम् / अभिहतैस्तैरेव शखैः प्रहारादिकम् // 353 // पढमसरे सिरभागं, णिडालयं होइ तह कवरगंमि / चिबुयं[च] चवगंमि, गिवप्पएसो टवगंमि // 354 // प्रथमस्वरग्रहणेन अवर्गो गृह्यते / तेन सिरो ज्ञेयः / कवर्गे निडालं / चवर्गे 10 222, पा० 1] चिबुकं / टवर्गे ग्रीवाप्रदेशा(शः) // 354 // हिययं च तवग्गंमि, कडिय पवग्गंमि होइ नायबा / अरू [य] यवग्गंमि, जाणु पव(ए)सो सवग्गंमि // 355 // तवर्गाक्षरबहुले प्रश्ने हृदयं ज्ञेयम् / पवर्गबहुले प्रश्ने कटी ज्ञेया। ज(य)वर्गबहुले ऊरू ज्ञेयौ / जाणु(नु)पादौ सवर्गबहुले // एवं अष्टविभागांगकल्पना / [प० 222, पा० 2] पंच(एवं?)प्रदेशभागकल्पनार्थः(र्थमाह!)॥ 355 // सीसो य अवगंमि, णिडालदेसो तहा कवग्गंमि / अच्छी य चवग्गंमि अ, णासा हु तहा टवग्गंमि // 356 // ___ यदभिहितं अवर्गबहुले प्रश्ने शिरो ज्ञेयः, तस्येदानीमवयवा[न] तैरेव वर्गाक्षरैराह - अवर्गाक्षरबहुले प्रश्ने मूर्द्धजाः प्रत्येतव्याः / [50 223, पा० 1] कवर्गाक्षरबहुले प्रश्ने ललाटं ज्ञेयम् / चवर्गबहुले प्रश्ने लोचने / टवर्गे नासिका // 356 // वक होइ तवग्गे, अहरोट्रा तह पवग्गए भणिया / चिबुयं च [य]वग्गंमि, होइ य गीवा शवगंमि // 357 // तकारा(वर्गा)धिके वक्त्रम् / पवर्गाधिके ओष्ठौ / यवर्गे चिबुकः / शवर्गे प्रीवा इति // 35 // (99) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org