SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ आवश्यक - मूलसूत्रम् - २- ४/२२ दंसणवत्तया असंणीण संणीणवि जेहिं न किंचि कुतित्थियमयं पडिवन्नं, अभिग्गहियमिच्छादंसणवत्तिया किरिया दुविहा- हीनाइस्तिदंसणे य तव्वइरित्तदंसणे य, हीना जहा अंगुटुपव्वमेत्तो अप्पा वत्त सामागतं लभेत्तो वालग्गमेत्तो परमाणुमेत्तो हृदये जाज्वल्यमानस्तिष्ठति भ्रूललाटमध्ये वा, इत्येवमादि, अहिगा जहा पंचधनुसइगो अप्पा सव्वगओ अकत्ता अचेयणो इत्येवमादि, एवं हीनाइरित्तदंसणं, तव्वइरितदंसणं नास्त्येवाऽऽत्मीयो वा भावः नास्त्ययं लोकः न परलोकः असत्स्वभावाः सर्वभावा इत्येवमादि, अपच्चक्खाणकिरिया अविरतानामेव, तेषां न किञ्चिदू विरतिर (तम) स्ति, सा दुविहा- जीव अपच्चक्खाणकिरिया अजीवऽपच्चक्खाणकिरिया य, न केसुइ जीवेसु अजीवेय वा विरती अत्थित्ति ५, दिट्टिया किरिया दुविहा, तंजहा जीवदिट्टिया य अजीवदिट्टीया य, जीवदिडीया आसाईणं चक्खुदंसणवत्तियाए गच्छइ, अजीवदिट्टिया चित्तकम्माईणं ६, पुट्टिया किरिया दुविहा पत्ता - जीवपुट्ठिया अजीवपुट्ठिया य, जीवपुठिया जा जीवाहियारं पुच्छइ रागेण वा दोसेवा, अजीवाहिगारं वा, अहवा पुट्ठियत्ति फरिसणकिरिया, तत्थ जीवफरिसणकिरिया इत्थी पुरिसं नपुंसगं वा स्पृशति, संघट्टेइत्ति भणियं होइ, अजीवेसु सुहनिमित्तं मियलोमाइ वत्थजायं मोत्तिगोदि वा रयणजायं स्पृशति ७, पाडुच्चिया किरिया दुविहा- जीवपाडुच्चिया अजीवपाडुच्चिया, जीवं पहुच जो बंध सा जीवपाडुधिया, जो पुण अजीवं पडुच रागदोसुब्भवो सा अजीवपाडुच्चिया ८, सामंतोवणिवाइया समन्तादनुपत्तीति सामंतोवणिवाइया सा दुविहा- जीवसामंतोवणिवाइया य अजीवसामंतोवणिवाइया य, जीवसामंतोवणिवाइया जहा एगरस संडो तं जनो जहा जहा पलोएइ संसय तहा तहा सो हरिसं गच्छइ, अजीवेवि रहकम्माई, अहवा सामंतोवणिवाइया दुविहा सामंतोवणिवाइया य सव्वसामंतोवणिवाइया य, देससामंतोवणिवाइया प्रेक्षकान् प्रति यकदेशेनागमो भवत्यसंयतानां सा देससामंतोवणिवाइया, सव्वसामंतोवणिवाइया य यत्र सर्वतः समन्तात् प्रेक्षकाणामागमो भवति सा सव्वसामंतोवणिवाइया, अहवा समन्तादनुपतन्ति प्रमत्तसंजयाणं अन्नपाणं प्रति अवंगुरिते संपातिमा सत्ता विनस्संति ९, नेसत्थिया किरिया दुविहाजीवनेसत्थिया य अजीवनेसत्थि या य, जीवनेसत्थिया रायाइसंदेसाउ जहा उदगस्स जंतादीहिं, अजीव सत्थिया जहा पहाणकंडाईण गोफणधनुहमाइहिं निसिरइ, अहवा नेसत्थिया जीवे जीवं निसिरइ पुत्तं सीसं वा, अजीवे सूत्रव्यपेतं निसिरइ वस्त्रं पात्रं वा, सृज विसर्ग इति १०, साहित्थिया किरिया दुविहा- जीवसाहत्थिया अजीवसाहत्थिया य, जीवसाहत्थिया जं जीवेण जीवं मारेइ, अजीव साहित्थिया जहा असिमाईहिं, अहवा जीवसाहत्थिया जं जीवं सहत्थेण तालेइ, अजीव साहित्थिया अजीवं सहत्थेण तालेइ वत्थं पत्तं वा ११, आणमणिया किरिया दुबिहाजीवणमणिया अजीव आणमणिया य, जीवाणमणी जीवं आज्ञापयति परेण, अजीवं वा आणवावेइ १२, वेयारणिया दुविहा- जीववेयारणिया य अजीववेयारणिया य, जीववेयारणिया जीवं विदारे, स्फोटयतीत्यर्थः एवमजीवमपि अहवा जीवमजीवं वा आभासिएस विक्केमाणो दो भासिउ वा विदारेइ परियच्छावेइत्ति भणियं होइ, अहवा जीवं वियारेइ असंतगुणेहिं एरिसो तारिलो तुमंति अजीवं वा वेतारणबुद्धीए भाइ - एरिसं एयंति १३, , अनाभोगवत्तिया किरिया दुविहा- अनाभोग आदियणाय अनाभोगनिक्खेवणाय, अनाभोगोअन्नाणं आदियणआ-गहणं निक्खिवणं-ठवणं, तं ग्रहणं निक्खिवणं वा अनाभोगेण अपमजियाइ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003377
Book TitleAgam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages808
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 40, & agam_aavashyak
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy