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________________ शतकं-७, वर्गः-, उद्देशकः-२ ३१७ अथोक्तभेदेन प्रत्याख्यानेन तद्विपर्ययेण च जीवादिपदानि विशेषयन्नाह मू. (३४३) जीवाणं भंते! किं मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चरखाणी गोयमा! जीवा मूलगुणपञ्चक्खाणीवि उत्तरगुणपञ्चक्खाणीवि अपञ्चक्खाणीवि। नेरइया णं भंते ! किं मूलणगुणपचक्खाणी० पुच्छा ?, गोयमा ! नेरइया नो मूलगुणपञ्चक्खाणी नो उत्तरगुणपञ्चखाणी अपच्चक्खाणी, एवं जाव चउरिदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोनियामणुस्सायजहाजीवा, वाणमंतरजोइसियवेमानियाजहानेरइया एएसि णं भंते ! मूलगुणपच्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपच्चक्खाणी य कयरे २ हिंतोजाव विसेसाहिया वा?, गोयमा! सवत्थोवाजीवामूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा अपचक्खाणी अनंतगुणा । एएसिणंभंते! पंचिंदियतिरिक्खजोनियाणपुच्छा, गोयमा! सब्वत्थोवाजीवा पंचेदियतिरिक्खजोनिया मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपच्छक्खाणी असंखेज्जगुणा अपञ्चक्खाणी असंखिजगुणा। एएसिणं भंते ! मणुस्साणं मूलगुणपञ्चखाणीणं० पुच्छा, गोयमा! सव्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपच्चरखाणी उत्तरगुणपच्चक्खाणी संखेजगुणा अपञ्चक्खाणी असंखेनगुणा। जीवा णं भंते ! किं सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणी?, गोयमा! जीवा सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपच्चरखाणी अपञ्चक्खाणीवि । नेरइयाणं पुच्छा, गोयमा ! नेरइया नो सब्यमूलगुणपञ्चक्खाणी नो देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणी, एवंजाव चउरिदिया __पंचिंदियतिरिक्खपुच्छा, गोयमा! पंचिंदियतिरिक्ख० नोसव्वमूलगुणपञ्चरखाणी देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणीवि, मणुस्सा जहा जीवा, चाणमंतरजोइसवेमानिया जहा नेरइया एएसिणंभंते! जीवाणं सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणीणंदेसमूलगुणपञ्चक्खाणीणंअपञ्चक्खाणीणयकयरे२हितोजाव विसेसाहिया वा?, गोयमा! सव्वत्थोवाजीवा सव्यमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपञ्चक्खाणी असंखेनगुणा अपचक्खाणी अणंतगुणा । एवं अप्पाबहुगानि तिन्निवि जहा पढमिल्लए दंडए, नवरं सव्वत्थोवा पंचिंदियतिरिक्खजोनिया देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपच्चक्खाणी असंखेनगुणा। जीवा णं भंते ! किं सव्वुत्तरगुणपञ्चक्खाणी देसुत्तरगुणपञ्चक्खामी अपञ्चक्खाणी?, गोयमा! जीवा सव्वुत्तरगुणपञ्चक्खाणीवि तिन्निवि, पंचिंदियतिरिक्खजोनिया मणुस्सा य एवं चेव, सेसा अपञ्चखाणी जाव वेमानिया। एएसिणंभंते! जीवाणं सव्वुत्तरगुणपञ्चक्खाणी अप्पाबहुगानि तिन्निव जहा पढमे दंडए जाव मणूसाणं। जीवाणंभंते! किंसंजया असंजयासंजयासंजया?, गोयमा! जीवा संजयाविअसंजयावि संजयासंजयावि तिन्निवि, एवं जहेव पन्नवणाए तहेव भानियव्वं, जाव वेमानिया, अप्पाबहुगं तहेव तिण्हवि भानियव्वं। जीवा णं भंते ! किं पञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणी पञ्चक्खाणापञ्चक्खाणी, गोयमा ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003339
Book TitleAgam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages1096
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size23 MB
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