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अध्ययनं-३६,[ नि. ५५९] उपलक्षणं चेह सहस्र इति, वर्णादितारतम्यस्य बहुतरभेदत्वेनासङ्ख्यभेदताया अपि सम्भवादिति सूत्रार्थः ।। इत्थं पृथ्वीजीवानभिधायाब्जीवानाहमू. (१५४८) दुविहा आउजीवा उ. सुहुमा बायरा तहा।
पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुनो। मू.(१५४९) बायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया।
सुद्धोदए य उस्से, हरयनु महिया हिमे॥ मू.(१५५०) एगविहमनाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया।
सुहमा सव्वलोगंमि, लोगदेसे य बायरा ।। मू. (१५५१) संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय।
ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य॥ मू.(१५५२) सत्तेव सहस्साई, वासानुक्कोसिया भवे।
आउठिई आऊणं, अंतोमुहुत्त जहन्नयं। मू.(१५५३) असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं।
कायठिई आऊणं, तं कायं तु अमुंचओ॥ मू.(१५५४) अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
विजढंमि सए काए आउजीवाण अंतरं।। मू. (१५५५) एएसिं वन्नाओ चेव, गंधओ रसफासओ।
संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्सओ।। वृ. सूत्राष्टकं व्याख्यातप्रायमेव नवरं 'सुद्धोदकं' मेघमुक्तं समुद्रादिसम्बन्धि च जलम् 'ओसे'त्ति अवश्यायः शरदादिषु प्राभातिकसूक्ष्मवर्षः 'हरतनु' प्रातः सस्नेहपृथिव्युद्भवस्तृणाग्रजलबिन्दुः ‘मिहिका' गर्भामासेषु गर्भसूक्ष्मवर्षा 'हिमं' प्रतीतमेव, सप्तैव सहस्राणि वर्षानामुत्कृष्टिका भवेत्, काऽसौ?-आयुःस्थितिः 'अपाम्' इत्यस्जीवानामिति सूत्राष्टकार्थः ।। '. मू.(१५५६) दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा।
पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुनो।। मू.(१५५७) बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया।
साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य॥ मू. (१५५८) पत्तेयसरीरा उ, नेगहा ते पकित्तिया।
रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा। मू.(१५५९) वलय पव्वया कुहणा, जलरूहा ओसही तिणा।
हरियकाया उ बोद्धव्वा, पत्तेया इति आहिया। मू. (१५६०) साहारणसरीरा उ, नेगहा ते पकित्तिया।
आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य॥ मू. (१५६१) हिरिली सिरिली सिस्सिरीली, जावई केयकंदली।
पलंडुलसणकंदे य, कंदली य कुहव्वये।
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