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अध्ययन-३२,[नि.५३० ]
चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिडे । मू. (१२७४ ) रूवानुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसंनिओगे।
वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे? || मू.(१२७५) रूवे अतित्ते अपरिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढ़ि।
अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ।। मू. (१२७६ ) तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य।
- मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चइ से। मू. (१२७७) मोसस्स पच्छा य परत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते।
एवं अदत्तानि समायअंतो, रूवे अतित्तो दहिओ अनिस्सो॥ मू.(१२७८)रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुज्ज कयाइ किंचि?॥
तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। मू.(१२७९) एमेव रूवंमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ।
पदुट्ठचित्तो अचिणाइ कम्म, जं से पुनो होइ दुहं विवागे । मू.(१२८०) रूवे विरत्तो मनुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण।
नलिप्पई भवमझेऽवि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं॥ मू.(१२८१) सोयस्स सदं गहणं वयंति, तं रागहेउंतु मणुन्नमाहु।
तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो। मू. (१२८२) सद्दस्स सोयं गहणं वयंति, तं रागहेतु मणुनमाहु।
तं दोसहेउं अमणुनमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो। मू. (१२८३) सद्देसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ सो विनासं।
रागाउरे हरिणमिउव्व मद्धे, सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्छं। मू.(१२८४ ) जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं।
दुदंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि सदं अवरज्झई से॥ मू.(१२८५)
एगंतरत्ते रुइरंसि सद्दे० ॥ मू.(१२८६)
सद्दाणुगासाणु०॥ . मू.(१२८७)
सद्दाणुवाएण परिग्गहेण०॥ मू.(१२८८)
सद्दे अतित्ते०॥ मू.(१२८९)
तण्हाभिभूयस्स०॥ मू.(१२९०)
मोसस्स पच्छा य॥ मू.(१२९१)
सद्दाणु०॥ मू.(१२९२)
एमेव सइंमि०॥ मू.(१२९३)
सद्दे विरत्तो०॥ मू.(१२९४) घाणस्स गंधं गहणं वयंति॥ मू.(१२९५)
गंधस्स घाणं॥
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