SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ प्रज्ञापनाउपाङ्गसूत्रम्-२-२२/-1-1५३१ न भवत्यपि, तथा च एतदेव प्रश्नसूत्र- पूर्वकमाह मू. (५३२) पाणातिपातविरए णं भंते ! जीवे कइ कम्मपगडीतो बंधति ?,गो० ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा, एवं मणूसेवि भाणितब्बे, पाणातिपातविरयाणंभंते! जीवा कति कम्मपगडीतो बंधंति?, गो०! सब्वेवि ताव होजा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगाय १ अहवा सत्तविहबं० एगविहबं० अट्ठविहबंधगेयर अहवा सत्तविहबं० एगविहबं० अट्टविहबंधगाय ३ अहवा सत्तविहबं० एगविहबं० छविहबंधगे य४, अहवा सत्तविहबं० एगवि० छविहबंधगाय ५ अहवा सत्तविहबं० एगविहबं० अबंधए य ६ अहवा सत्तविहबं० एगविहबं० अबंधगाय७ -अहवासत्तवि० एगवि० अट्ठविधंबधगेयछविहबंधएय १ अहवा सत्तविहबंधगाय एगविहबं० अट्ठविहबंधए यछव्विहबंधगाय २ अहवा सत्तविहबं० एगवि० अट्टविहबंधगाय छविहबंधए य३ अहवा सत्तविहबंधगायएगविहबंधगा यअट्ठविहबंधगा यछब्बिहबंधगाय४ -अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य अबंधए य १अहवा सत्तविहबं० एगविहबं० अट्टविहबंधएयअबंधगायर अहवा सत्तविहबं० एगवि० अढविहबंधगा य अबंधए य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य अबंधगा य४, -अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अबंधए य १ अहवा सत्तविहबं० एगविहबंधगा य छब्बिहबंधए य अबंधगा य २, अहवा सत्तविहबंधगा य एगवि० छविह० अबंधए य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगवि० छविह० अबंधगा य४ __ -अहवासत्तविहबंधगाय एगवि० अट्ठविहबंधगेयछविहबंधएयअबंधएय १ अहवा सत्तविहबंधगाय एगवि० अट्ठविहबंधए यछविहबंधए य अबंधगाय २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविह० अट्ठविहबंधए यछबिहबंधगाय अबंधए य ३ अहवा सत्तविहबंधगाय एगविह० अट्ठविधबंधएयछविहबंधगायअबंधगाय४, अहवासत्तवि० एगवि० अट्ठवि० छब्बिहबंधगे य अबंधए य ५, अहवा सत्तविहबंधगा य एगवि० अट्ठविह० छव्विहबंधगे य अबंधगा य ६, अहवा सत्तवि० एगविह- अट्ठवि० छबिहबंधगा य अबंधए य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य एग० अट्ठवि० छब्बिहबं० अबंधगाय ८ एवं एते अट्ठभंगा, . सब्वेवि मिलिया सत्तावीसंभंगा भवंति, एवंमणूसाणविएतेचेवसत्तावीसंभंगाभाणितब्बा, एवं मुसावायविरयस्स जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स य मणूसस्स य, मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! जीवे कति कम्मपगडीतो बंधति?, गो० ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए छबिहबंधए वा एगवि० अबंधए वा, मिच्छादसणसल्लविरएणंभंते! नेरइएकति कम्मपगडीतो बंधति?, गो०! सत्तविहबंधए वा अट्टवि० जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिय०, मणूसे जहा जीवे, वाणमंतरजोइसितवेमाणिते जहा नेरइते, मिच्छादसणसल्लविरयाणंभंते! जीवा कति कम्मपगडीतो बंधंति?, गो०! तेचेव सत्तावीसंभंगा भाणि० मिच्छादसणसल्लविरयाणं भंते ! नेरइया कति कम्मपगडीतो बंधंति?, गो० ! सब्वेवि ताव होना सत्तविहबंधगा अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठवि० एवं जाव वेमाणिया, नवरं मणूसाणं जहा जीवाणं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003315
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 11 Pragnapana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages342
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy