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पदं-२२, उद्देशकः-, द्वारं - २, अध्ययनं -७, मिच्छादंसणिस्स।
नेरइयाणं भंते ! कति किरियातो पं०?, गो० ! पंच किरियातो पं०, तं०-आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया, एवं जाव वेमाणियाणं । जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया क० तस्स परिग्गहिया किं कजति ? जस्स परिग्गहिया कि० तस्स आरंभिया कि०?, गो० ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया कि० तस्स परिग्गहिया सिय कज्जति सिय नो कज्जति, जस्स पुण परिग्गहिया किरियाक० तस्स आरंभिया कि० नियमा क०, जस्सणंभंते! जीवस्सआरंभियाकि० क० तस्स मायावत्तिया कि० क० पुच्छा, गो० ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया कि० क० तस्स मायावत्तिया कि० नियमा क० जस्स पुण मायावत्ति० कि० क० तस्स आरंभिया कि० सिय कजति सिय नोक०,।
जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया कि० तस्स अपञ्चक्खाणकिरिया पुच्छा?, गो० ! जस्स जीवस्स आरंभिया कि० तस्स अपञ्चक्खाणकिरिया सिय कजति सिय नो० क० जस्स पुण अपच्चक्खाणकिरिया क० तस्स आरंभिया किरिया नियमा क०, एवं मिच्छादसणवत्तियाएवि समं, एवं पारिग्गहियावि तिहिं उवरिल्लाहिं समं संचारेतव्वा, जस्स मायावत्तिया कि० तस्स उवरिल्लाओ दोवि सिय कजंति सिय नो कजंति, जस्स उवरिल्लाओ दो कजंति तस्स मायावत्तिया नियमा कजति, जस्स अपञ्चखाणकि० क० तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कज्जति सिय नो कजति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया कि० तस्स अपच्चक्खाणकिरिया नियमा कजति
नेरइयस्स आइल्लियातो चत्तारि परोप्परं नियमा कजति, जस्स एताओ चत्तारि कजंति तस्स मिच्छादसणवत्तिया कि० भइजति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजति तस्स एतातो चत्तारि नियमा कजंति, एवं जाव थणियकुमारस्स, पुढविकाइयस्स जाव चउरिदियस्स पंचवि परोप्परं नियमा कजंति,।।
___पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्सआतिल्लियातोतिन्निविपरोप्परं नियमाकजंति, जस्स एयाओ कजंति तस्स उवरिल्लिया दोन्नि भइज्जंति, जस्स उवरिल्लातो दोन्नि कजंति तस्स एतातो तिन्निवि नियमा कजंति, जस्स अपच्चक्खाणकिरिया तस्स मिच्छादसणवत्तिया सिय कजति सिय नो क०, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरियाक० तस्सअपच्चक्खाणकिरिया नियमाक०, मणूसस्स जहा जीवस्स, । वाणमंतरजोइसियवेमाणियस्स जहा नेरइयस्स, जं समयण्णं भंते ! जीवस्स आरंभिया कि० क० तं समयं पारिग्गहिया कि० क०?, एवं एते जस्स जं समयं जं देसं जं पदेसेण य चत्तारि दंडगा नेयव्वा, जहा नेरइयाणं तहा सव्वदेवाणं नेतव्वं जाव वेमाणियाणं। . वृ. 'कइणं भंते!' इत्यादि, आरम्भः-पृथिव्याधुपमईः, उक्तंच॥१॥ “संरंभो संकप्पो परितावकरो भवे समारंभो ।
__ आरंभो उद्दवतो सुद्धनयाणं तु सव्वेसि ।।" आरम्भः प्रयोजनं कारणंयस्याःसाआरम्भिकी, 'परिग्गहिय'त्तिपरिग्रहो-धर्मोपकरणवर्जवस्तुस्वीकारः धर्मोपकरणमूर्छाचपरिग्रह एवपारिग्रहिकी परिग्रहेण निर्वृत्ता वा पारिग्राहिकी, 'मायावत्तिया' इति माया-अनार्जमुपलक्षणत्वात् क्रोधोदेरपि परिग्रहः माया प्रत्यय; कारणं राम्या मा मायापत्यया 'अपम्वाणकिरिया' इति अप्रत्याख्यानं-मनागपि विरतिपरिणामा
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