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जीवाजीवाभिगमउपाङ्गसूत्रम् २/-/५२
'से किंत'मित्यादि, तिर्यग्योनिस्त्रयस्त्रविधाः, तद्यथा-जलचर्य स्थलचर्य खचर्यश्च ।
मू. (५३) से किं तं इत्थीओ ?, २ तिविधाओ पन्नत्ता, तंजहा-तिरिक्खजोणियाओ मणुस्सित्थीओ देवित्थीओ।
सेकिंतंतिरिक्खजोणिणित्थीओ?, २तिविधा पन्नत्ता, तंजहा-जलयरीओ थलयरीओ, खहयरीओ। से किंतं जलयरीओ?, २ पंचविधाओपन्नत्ताओ, तंजहा-मच्छीओजाव सुंसुमारीओ।
से किं तं थलयरीओ?, २ दुविधाओ पन्नत्ता, तंजहा-चउप्पदीओ य परिसप्पीओ य। से किं तं चउप्पदीओ?, २ चउविधाओ पन्नत्ता, तंजहा-एगखुरीओ जाव सणप्फईओ।
से किंतं परिसप्पीओ?, २ दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-उरपरिसप्पीओ यभुजपरिसप्पीओ यासे किंतं उरगपरिसप्पीओ?,२तिविधाओपन्नत्ता, तंजहा-अहीओ अहिगरीओमहोरगाओ, सेत्तं उरपरिसप्पीओ।से किंतंभुयपरिसप्पीओ?,२ अनेगविघाओ पण्णत्ता, तंजहा-सेरडीओ सेरंघीओगोहीओ नउलीओसेधाओसण्णाओ सरडीओसेरंधीओभावाओखाराओपवण्णाइयाओ चउप्पइयाओ मूसियाओ मुगुसिओधरोलियाओ गोव्हियाओ, जोव्हियाओ बिरचिरालियाओष सेत्तंभुयगपरिसप्पीओ।से किंतंखहयरीओ?,२ चउविधाओ पन्नत्ता, तंजहा-चम्मपक्खीओ, जाव सेत्तं खहयरीओ, सेत्तं तिरिक्खजोणिओ।
सेकिंतंमणुस्सिओ?, २तिविधाओपण्णत्ता, तंजहा-कम्मभूमियाओअकम्मभूमियाओ अंतरदीवियाओ । से किं तं अंतरदीवियाओ ?, २ अट्ठावीसतिविधाओ पन्नत्ता, तंजहा-एगूरूइयाओ आभासियाओ जाव सुद्धदंतीओ, सेत्तं अंतरदी वियाओ।
से किंतं अकम्मभूमियाओ?, २ तीसविधाओ पन्नत्ता, तंजहा-पंचसु हेमवएसु पंचसु एरण्णवएसुपंचसुहरिवंसेसु पंचसुरम्मगवासेसुपंचसुदेवकुरासुपंचसुउत्तरकुरासु, सेत्तंअकम्मा० |से किंतं कम्मभूमिया?,२ पन्नरसविधाओ पन्नत्ताओ, तंजहा-पंचसुभरहेसु पंचसु एरवएसु पंचसु महाविदेहेसु, सेत्तं कम्मभूमगमणुस्सीओ, सेत्तं मणुस्सित्थीओ।
से किं तं देवित्थियाओ?, २ चउविधा पन्नत्ता, तंजहा-भवणवासिदेवित्थियाओ वाणमंतरदेवित्थियाओ जोतिसियदेवित्थियाओ वेमाणियदेवित्थियाओ। से किंतंभवणवासिदेवित्थियाओ?, २ दसविहा प०-असुरकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ जाव थणीतकुमारवणवासिदेवित्थियाओ, से तंभवणवासिदेवित्थियाओ। से किंतं वाणमंतरदेवित्थियाओ?,२ अट्ठविधाओ प० पिसायवाणमंतरदेवित्थियाओ जाव से तं वाणमंतरदेवित्थियाओ। से किंतं जोतिसियदेवित्थियाओ?, २ पंचविधाओ प०-चंदविमाणजोतिसियदेवित्थियाओ सूर० गह० नक्खत्त० ताराविमाणजोतिसियदेवित्थियाओ, से तंजोतिसियाओ ।
से किं तं वेमामियदेवित्थियाओ?, २ दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-सोहम्मकप्पवेमाणियदेवित्थियाओ ईसाणकप्पवेमाणियदेवित्थिगाओ, सेत्तं वेमाणित्थिओ॥
वृ. ‘से किं त'मित्यादि । मनुष्यस्त्रयोऽपि त्रिविधास्तद्यथा-कर्मभूमिका अकर्मभूमिका अन्तरद्वीपिकाश्च । ‘से किं त'मित्यादि, देवस्त्रियश्चतुर्विधास्तद्यथा-भवनवासिन्यो व्यन्तर्यो ज्योतिष्क्यो वैमानिक्यश्च। सम्प्रति स्त्रिया भवस्थितिमानप्रतिपादनार्थमाहमू. (५४) इत्थी णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ?, गोयमा ! एगेणं आएसेणं
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