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________________ ४९४ भगवती अङ्गसूत्रं ९/-/३३ / ४६३ गालेमाणे इट्ठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पञ्चणुब्भवमाणे विहरइ । तए णं खत्तियकुंडग्गामे नगरे सिंघाडगतियचउक्कचच्चरजाव बहुजणसद्दइ वा जहा उववाइए जाव एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ - एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव सव्वन्नू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ, तं महप्फलं खलु देवाणुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं जहा उववाइए जाव एगाभिमुहे खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छंति निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नगरे जेणेव बहुसालए चेइए एवं जहा उववाइए जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति । तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स तं महया जणसद्दं वा जाव जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - किन्नं अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा मुगुंदमहेइ वा णागमहेइ वा जक्खमहेइ वा भूयमहेइ वा कूवमहेइ वा तडागमहेइ वा नईमहेइ वा दहमहेइ वा पव्वयमहेइ वा रुक्खमहेइ वा चेइयमहेइ वा थूभमहेइ वा जन्नं एए बहवे उग्गा भोगा राइन्ना इक्खागा नाया कोरव्वा खत्तिया खत्तियपुत्ता भडा भडपुत्ता जहा उववाइए जाव सत्थवाहप्पभिइए ण्हाया कयबलिकम्मा जहा उववाइए जाव निग्गच्छंति ?, एवं संपेहेइ एवं संपेहित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेति कंचु० २ एवं वयासी - किण्हं देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छंति ? तए णं से कंचुइज्जपुरिसे जमालिगा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्टे समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल० जमालिं खत्तियकुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावेत्ता एवं वयासी - नो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छइ, एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज समणे भगवं महावीरे जाव सव्वन्नू सव्वदरिसी माहणकुंडगामस्स नयरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरति, तए णं एए बहवे उग्गा भोगा जाव अप्पेगइया वंदणवत्तियं जाव निग्गच्छंति । तणं से जमालियखत्तियकुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमहं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ट० कोडुंबियपुरिसे सहावेइ कोडुंबियपुरिसे सद्दावइत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पचप्पिणह, तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वृत्ता समाणा जाव पञ्च्चप्पिणंति । तए णं से जमालियखत्तियकुमारे जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता हाए कयबलिकम्मे जहा उववाइए परिसावन्नओ तहा भाणियव्वं जाव चंदणाकिन्नगायसरीरे सव्वालंकारविभूसिए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ मज्जणघराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहेइ चाउ० २ त्ता सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडकर पहकरवंदपरिक्खित्ते खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नगरे जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हेइ तुरए २ त्ता रहं ठवेइ रहं ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति रहा २ त्ता पुप्फतंबोलाउहमादीयं वाहणाओ य विसज्जेइ २ त्ता एगसाडियं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003309
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 05 Bhagvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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