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सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-(दा) ददत्, ददतौ, ददत: । (धा) दधत्, दधतौ, दधत:। (जक्ष) जक्षत्, जक्षतौ, जक्षत: । (जागृ) जाग्रत्, जाग्रतौ, जाग्रतः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(अभ्यस्तात्) अभ्यस्त-संज्ञक (अङ्गात्) अग से परे (शतुः) शतृ (प्रत्ययस्य) प्रत्यय को (तुम्) नुम् आगम (न) नहीं होता है।
उदा०-(दा) ददत् । देता हुआ। ददतौ । दो देते हुये। ददत: । सब देते हुये। (धा) दधत । धारण-पोषण करता हुआ। दधतौ। दो धारण-पोषण करते हुये। दधतः। सब धारण-पोषण करते हुये। (जक्ष) जक्षत् । खाता/हंसता हुआ। जक्षतौ । दो खाते/हंसते हुये। जक्षतः । सब खाते/हंसते हुये। (जाग) जाग्रत् । जागता हुआ। जाग्रतौ । दो जागते हुये। जाग्रतः । सब जागते हुये।
सिद्धि-(१) ददत् । दा+लट् । दा+शतृ । दा+शप्+अत् । दा+o+अत् । दा-दा+अत्। द+द्+अत् । ददत्+सु। ददत्+० । ददत्।
यहां डुदाञ् दाने (जु०उ०) इस उभयपद से लट्' प्रत्यय और इसके स्थान में लट: शतृशानचा०' (३।२।१२४) से लट्' के स्थान में शतृ-आदेश है। जुहोत्यादिभ्यः श्लुः' (२।४।७५) से 'शप्' को श्लु (लोप) और श्लौ' (६।१।१०) से 'दा' को द्वित्व होता है। दिरुक्त दा-दा' की 'उभे अभ्यस्तम्' (६।११५) से अभ्यस्त-संज्ञा है। इस सूत्र से अभ्यस्त-संज्ञक 'द-दा' धातु से परे 'शत' प्रत्यय को नुम् आगम का प्रतिषेध है। ‘श्नाभ्यस्तयोरात:' (६।४।११२) से आकार का लोप होता है। उगिदचां सर्वनामस्थानेऽधातोः' (७११९७०) से प्राप्त नुम् आगम का इस सूत्र से प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही डुधाञ् धारणपोषणयोः' (जु०उ०) धातु से-दधत् ।
(२) जक्षत् । यहां जक्ष भक्षहसनयोः' (अ०प०) धातु से पूर्ववत् 'शतृ' प्रत्यय है। जमित्यादय: षट्' (६।१।६) से 'जक्ष्' धातु की अभ्यस्त-संज्ञा है। ऐसे ही 'जाग निद्राक्षये (अ०प०) धातु से-जाग्रत् ।
विशेष: यहां ई च द्विवचने (७।१७७) से ईकार की अनुवृत्ति नहीं होती है, क्योंकि शतृ' प्रत्यय को किसी सूत्र से ईकारादेश विहित नहीं है, अत: उसके प्रतिषेध का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है। 'शत' प्रत्यय को उगिदचां सर्वामस्थानेऽधातो:' (७।१।७०) से नुम्-आगम प्राप्त है, उसका प्रतिषेध किया है, अत: यहां अनङ् आदेश आदि से व्यवहित नम्' पद की सम्भव-प्रमाण से अनुवृत्ति की जाती है। नुमागम-विकल्प:
(३४) वा नपुंसकस्य ७६। प०वि०-वा अव्ययपदम्, नपुंसकस्य ६।१ । अनु०-अङ्गस्य, नुम्, अभ्यास्तात्, शतुरिति चानुवर्तते।
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