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________________ सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः यहां 'डुलभ प्राप्तौ' (भ्वा०आ०) धातु से हेतुमति च' (३।१।२६) से णिच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से अजादि णिच् (इ) प्रत्यय परे होने पर लभ्' धातु को नुम्' आगम होता है। नश्चापदान्तस्य झलि' (८।३।२४) से नकार को अनुस्वार और 'अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः' (८।४।२८) से अनुस्वार को परसवर्ण मकार होता है। तत्पश्चात् लम्भि' इस णिजन्त धातु से लट्' प्रत्यय है। . (२) लम्भकः । यहां 'लभ्' धातु से 'वुल्तृचौ' (३।१।१३३) से अजादि ण्वुल् (अक) प्रत्यय है। (३) साधुलम्भी। यहां साधु-उपपद लभ्' धातु से 'सुप्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये (३।२।७८) से अजादि णिनि (इन्) प्रत्यय है। (४) लम्भलम्भम् । यहां लभ्' धातु से 'आभीक्ष्ण्ये णमुल् च' (३।४।२२) से अजादि णमुल् (अम्) प्रत्यय है। वा०-'आभीक्ष्ण्ये द्वे भवत:' (८।१।१२) से द्वित्व होता है। (५) लम्भः । यहां लभ्' धातु से 'भावे' (३।३।१८) से भाव-अर्थ में अजादि घञ् (अ) प्रत्यय है। नुम्-आगम: (२०) आङो यि।६५। प०वि०-आङ: ५।१ यि ७१ (विषयसप्तमी)। अनु०-अङ्गस्य, नुम्, लभेरिति चानुवर्तते । अन्वय:-आङो लभेरङ्गस्य यि नुम्। अर्थ:-आङ उत्तरस्य लभेरङ्गस्य यकारादौ प्रत्ययविषये नुमागमो भवति। उदा०-आलम्भ्या गौः। आलम्भ्या वडवा। आर्यभाषा: अर्थ-(आङ:) आङ्-उपसर्ग से परे (लभे:) लभि इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (यि) यकारादि प्रत्यय विषय (नुम्) नुम् आगम होता है। उदा०-आलम्भ्या गौः। यज्ञ हेतु (घतादि) प्राप्त करने योग्य गौ। आलम्भ्या वडवा । आरोहण हेतु प्राप्त करने योग्य घोड़ी। सिद्धि-आलम्भ्या । आङ्+लभ+० । आ+ल नुम् भ्+ण्यत्। आ+लन् भ+य। आ+ल-भ्+य। आ+लम्भ+य। आलम्भ्य+टाम्। आलम्भ्या+सु। आलम्भ्या। ___ यहां आङ्-उपसर्गपूर्वक 'डुलभष् प्राप्तौ' (भ्वा०आ०) धातु से प्रथम यकारादि प्रत्यय का विषय उपस्थित होने पर इस सूत्र से नुम्' आगम होता है। तत्पश्चात् इस धातु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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