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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-प्राग हसति, प्राग्घसति। वह पहले हंसता है। मधुलिड हसति, मधुलिड्ढसति। मधुलिट् हंसता है। अग्निचिद् हसति, अग्निचिद्धसति । अग्निचित् हंसता है। त्रिष्टुब् हसति, त्रिष्टुब्भसति । त्रिष्टुप् हंसता है।
सिद्धि-प्राग हसति । यहां प्राक्' शब्द के ककार को झलां जशोऽन्तें (८।२।३९) से जश् गकार आदेश है। यहां हकार को पूर्वसवर्ण आदेश नहीं है। विकल्प-पक्ष में पूर्वसवर्ण आदेश है-प्राग्घसति। 'स्थानेऽन्तरतमः' (८।२।३९) के नियम से गकार से परवर्ती महाप्राण हकार को उसका अन्तरतम महाप्राण घकार पूर्वसवर्ण होता है। हकारेण चतुर्थाः' (पा०शि० ४ १०) से हकार के साथ वर्ग के चतुर्थ वर्ण (घ, झ, ढ, ध, भ) का आन्तर्य (सादृश्य) है। ऐसे ही-मधुलिड्ढसति, अग्निचिद्धसति, त्रिष्टुब्भसति । यहां हकार के स्थान में उसके अन्तरतम क्रमश: ढकार, धकार और भकार पूर्वसवर्ण हैं। छकारादेशविकल्प:
(२४) शश्छोऽटि।६२। प०वि०-श: ६१ छ: ११ अटि ७१। अनु०-संहितायाम्, झय:, अन्यतरस्यामिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां झय: शोऽटि अन्यतरस्यां छः।
अर्थ:-संहितायां विषये झय: परस्य शकारस्य स्थानेऽटि परतो विकल्पेन छकारादेशो भवति।
उदा०-प्राक् शेते, प्राक्छेते । अग्निचित् शेते, अग्निचिच्छेते। मधुलिट शेते। मधुलिट्छेते। त्रिष्टुप् शेते, त्रिष्टुप्छेते।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (झय:) झय् वर्ण से परवर्ती (श:) शकार के स्थान में (अटि) अट् वर्ण परे रहने पर (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (छ:) छकार आदेश होता है।
___ उदा०-प्राक् शेते, प्राक्छेते। वह पहले सोता है। अग्निचित शेते, अग्निचिच्छेते। अग्निचित् सोता है। मधुलिट् शेते। मधुलिट्छेते । मधुलिट् सोता है। त्रिष्टुप् शेते, त्रिष्टुप्छेते । त्रिष्टुप् सोता है।
सिद्धि-प्राक् शेते। यहां इस सूत्र से झय ककार वर्ण से परवर्ती शेते के शकार को अट् वर्ण (ए) परे होने पर छकार आदेश नहीं होता है। विकल्प-पक्ष में छकार आदेश है-प्राक्छेते। ऐसे ही-अग्निचिच्छेते, मधुलिछेते, त्रिष्टुप्छेते । छकार आदेश के पश्चात् 'स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।४०) से तकार को चवर्ग चकार आदेश है।
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