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________________ 1903 अष्टमाध्यायस्य चतुर्थः पादः सिद्धि-(१) गुणस: । यहां द्रु और नासिका शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। 'अजनासिकाया: संज्ञायां नसं चास्थूलात् (५।४।११८) से समासान्त 'अच्' प्रत्यय और 'नासिका' के स्थान में 'नस' आदेश है। इस सूत्र से द्रु' पूर्वपद में अवस्थित रेफ से परवर्ती तथा अट्-व्यवायी (उ) 'नस' उत्तरपद के नकार को णकार आदेश होता है। ऐसे ही-वार्षीणसः, खरणस: । (२) शूर्पणखा। यहां शूर्प और नख शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। 'नखमुखात् संज्ञायाम् (४।१।५८) से संज्ञा विषय में 'डीए' प्रत्यय का प्रतिषेध है। अत: स्त्रीलिङ्ग में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से 'शूर्प' पद में अवस्थित रेफ से परवर्ती तथा पवर्ग और अव्यवायी (अ) नख' उत्तरपद के नकार को णकार आदेश होता है। यहां 'अगः' से गकारवान् पूर्वपद का इसलिये प्रतिषेध किया गया है कि यहां णकार आदेश न हो-ऋगयनम्। रषाभ्यां नो ण: समानपदे (८।४।१) तथा 'अट्कुप्वानुम्व्यवायेऽपि (८।४।२) से समानपद-एक पद में ही णकारादेश प्राप्त था। अत: इस सूत्र से पूर्वपद से परवर्ती उत्तरपद के नकार को णकार आदेश विधान किया गया है। णकारादेशः(४) वनं पुरगामिश्रकासिध्रकाशारिकाकोटराग्रेभ्यः।४। प०वि०-वनम् १।१ (षष्ठ्यर्थे), पुरगा-मिश्रका-सिध्रका-शारिकाकोटरा-अग्रेभ्य: ५।३। ___ स०-पुरगाश्च मिश्रकाश्च सिध्रकाश्च शारिकाश्च कोटराश्च अग्रे च ते-पुरगामिश्रकासिध्रकाशारिकाकोटराग्रय:, तेभ्य:-पुरगामिश्रकासिध्रकाशारिकाकोटराग्रेभ्य: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । ____ अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, णः, पूर्वपदात्, संज्ञायामिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां संज्ञायां च पुरगामिश्रकासिध्रकाशारिकाकोटराग्रेभ्यो वनं नो णः। अर्थ:-संहितायां संज्ञायां च विषये पुरगामिश्रकासिध्रकाशारिकाकोटराग्रेभ्य: पूर्वपदेभ्य: परस्य वनमित्येतस्य नकारस्य स्थाने णकारादेशो भवति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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