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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ७०२ और 'झलां जश् झशि' (८/४/५३) से पूर्ववर्ती धकार को जश् दकार आदेश है। इस सूत्र से परि के रेफ से परवर्ती अट्-व्यवायी (इ) और आङ्ग्व्यवायी 'नह' के नकार को कार आदेश होता है। निर् और आङ् उपसर्ग में- निराणद्धम् । (५) बृंहणम् । यहां 'बृहि वृद्धौं' (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् 'ल्युट्' प्रत्यय और 'यु' को 'अन' आदेश है। 'इदितो नुम् धातो:' ( ७ 1१/५८ ) से धातु को 'नुम्' आगम है। 'नश्चापदान्तस्य झलिं' (८/३/२४) से नकार को अनुस्वार आदेश है। इस सूत्र से ऋकार में रेफश्रुति को मानकर नुम् (अनुस्वार) व्यवाय तथा अट्-व्यवाय (ह+अ) में 'अन' के नकार को णकार आदेश होता है। अनीयर् प्रत्यय में - बृंहणीयम् । णकारादेश: (३) पूर्वपदात् संज्ञायामगः । ३ । प०वि० - पूर्वपदात् ५ । १ संज्ञायाम् ७ । १ अग: ५ ।१ । सo - पूर्वं च तत् पदं चेति पूर्वपदम्, तस्मात् पूर्वपदात् (कर्मधारयतत्पुरुषः) । न विद्यते गकारो यस्मिन् सः-अग्, तस्मात् - अग: ( बहुव्रीहि: ) । अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम् नः, ण इति चानुवर्तते । अन्वयः-संहितायां संज्ञायां चाऽगः पूर्वपदाद् रेफात् षकाराच्च नो णः । अर्थः-संहितायां संज्ञायां च विषये गकारवर्जितं यत् पूर्वपदं तत्स्थाद् रेफात् षकाराच्च परस्य नकारस्य स्थाने णकारादेशो भवति । उदा०-द्रुणसः। वार्धीणसः । खरणसः । शूर्पणखा । अग इति किम्-ऋगयनम् । आर्यभाषाः अर्थ- (संहितायाम् ) सन्धि और (संज्ञायाम् ) संज्ञा विषय में (अग:) गकार से रहित (पूर्वपदात्) जो पूर्वपद है उसके (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (नः) नकार के स्थान में (ण) णकार आदेश होता है । उदा० - द्रुणसः । डुरिव दीर्घा नासिका यस्य स गुणसः । द्रु अर्थात् वृक्ष की शाखा के समान लम्बी नासिकावाला पुरुष । वार्षीणसः । वार्धीव नासिका यस्य स वाघ्रीणसः । वह बधिया बकरा जिसका रंग सफेद हो और कान इतने लम्बे हों कि पानी पीते समय पानी से छू जायें। एक पक्षी का नाम । गैंडा ( शब्दार्थकौस्तुभ ) । खरणसः । खर इव नासिका यस्य स खरणसः । गधे के समान नासिकावाला पुरुष । शूर्पणखा । शूर्पमिव नखानि यस्याः सा शूर्पणखा । छाज के समान बड़े नाखूनों वाली नारी । रामायण में वर्णित रावण की बहिन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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