SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (७) शाकटायन (३१०० वि० पूर्व) पाणिनि मुनि ने आचार्य शाकटायन को तीन बार स्मरण किया है-'लङः शाकटायनस्यैव' (३।४।१११) 'व्योलघुप्रयत्नतरः शाकटायनस्य' (८।३।१८) त्रिप्रभृतिषु शाकटायनस्य' (८।४।५०)। निरुक्तकार आचार्य यास्क ने वैयाकरण शाकटायन का मत उद्धृत किया है। पतञ्जलि मुनि ने भी शाकटायन को व्याकरणशास्त्र का प्रवक्ता माना है और शाकटायनं के पिता का नाम शकट लिखा है। पाणिनि मुनि ने भी शकट शब्द का नडादिगण में पाठ किया है। अत: शकट शब्द से नडादिभ्य: फक् (४।१।९९) से फक् (आयन) प्रत्यय करने पर शाकटायन शब्द सिद्ध होता है। __ अनन्त देव ने शुक्लयजु:प्रातिशाख्य में शाकटायन को काण्व का शिष्य लिखा है और शैशिरि शिक्षा में इन्हें शैशिरि का शिष्य बतलाया गया है। एक व्यक्ति समकालीन दो आचार्यों का भी शिष्य हो सकता है। पतञ्जलि मुनि ने आचार्य शाकटायन के जीवनकाल की एक घटना का चित्रण किया है-'अथवा भवति वै कश्चिद् जागदपि वर्तमानकालं नोपलभते तद्यथा वैयाकरणानां शाकाटायनो रथमार्ग आसीन: शकटसार्थं यान्तं नोपलेभे (महा० ३।२।११५) अर्थात्-कोई जागरित अवस्था में भी वर्तमानकाल में होनेवाली क्रिया को उपलब्ध नहीं करता है कि जैसे रथमार्ग में बैठे हुये वैयाकरण शाकटायन ने जाते हुये शकट समूह (गाड़ियां) को नहीं देखा क्योंकि उनका ध्यान कहीं अन्यत्र था। समय-आचार्य यास्क ने शाकटायन का नामग्राहम् उल्लेख किया है अत: इनका स्थितिकाल ३१०० वि० पूर्व का है। रचना-व्याकरणशास्त्र, दैवतग्रन्थ, निरुक्त, कोष, ऋकतन्त्र, सामतन्त्र, पञ्चपादी उणादिसूत्र, श्राद्धकल्प ये इनकी रचनायें मानी जाती हैं। (८) शाकल्य (३१०० वि० पूर्व) पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में आचार्य शाकल्य का चार स्थानों पर मत उद्धृत किया है-'सम्बुद्धौ शाकल्यस्येतावनार्षे (१।१।१६), 'इकोऽसवर्णे शाकल्यस्य हस्वश्च (६।१।१२७), 'लोप: शाकल्यस्य' (८।३।१९), 'सर्वत्र शाकल्यस्य' (८।४।५१)। शौकन ने ऋक् प्रातिशाख्य में और कात्यायन ने वाजसनेय प्रातिशाख्य में शाकल्य के मत का उल्लेख किया है। शाकल्य शब्द में शकल शब्द से गोत्रापत्य अर्थ में 'गर्गादिभ्यो यज् (४।१।१०५) से 'यञ्' प्रत्यय है-शकलस्य गोत्रापत्यमिति शाकल्यः । इससे सिद्ध है कि शाकल्य के पितामह का नाम शकल है। कहीं-कहीं शाकल नाम से भी इन्हें स्मरण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy