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अनुभूमिका (४) गालव (३१०० वि० पूर्व) पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में आचार्य गालव का चार स्थानों पर उल्लेख किया है-'इको हस्वोऽङ्यो गालवस्य' (६।३।६१) तृतीयादिषु भाषितपुंस्कं पुंवद् गालवस्य' (७।१।७४), 'अड् गायेगालवयो:' (७।३ ।९९), 'नोदात्तस्वरितोदयमगार्यकाश्यपगालवानाम्' (८।४।६७)। पुरुषोत्तमदेव ने भी भाषावृत्ति में गालव का मत प्रस्तुत किया है।
समय-यदि धन्वन्तरि का शिष्य गालव ही व्याकरणशास्त्र का प्रवक्ता हो तो इनका समय ४५०० वि० पूर्व का हो सकता है।
रचना-व्याकरणशास्त्र, गालवसंहिता, ब्राह्मणग्रन्थ, क्रमपाठ, शिक्षा, निरुक्त, दैवतग्रन्थ, शालाक्यतन्त्र, कामसूत्र, भूवर्णन ये आचार्य गालव की रचनायें मानी जाती हैं।
(५) चाक्रवर्मण (३००० वि० पूर्व) पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी और उणादि सूत्रों में भी आचार्य चाक्रवर्मण को स्मरण किया है-'ई चाक्रवर्मणस्य' (अष्टा० ६।१।१३०) 'कपश्चाक्रवर्मणस्य' (पञ्चपाद्युणादि० ३।१४४) पं० भट्टोजिदीक्षित ने भी शब्दकौस्तुभ में इनका मत उद्धृत किया है।
चाक्रवर्मण शब्द अपत्य-प्रत्ययान्त है-चक्रवर्मणोऽपत्यमिति चाक्रवर्मण: । इससे विदित होता है कि इनके पिता का नाम चक्रवर्मा था। व्याकरणदर्शन के कर्ता पं० गुरुपद हलदार ने वायुपुराण के आधार पर लिखा है कि चक्रवर्मा कश्यप मुनि के पौत्र थे (पृ० ५१९)।
समय-पञ्चपादी उणादि सूत्र के कर्ता आपिशलि हैं। उणादि सूत्र में चाक्रवर्मण के उल्लेख से स्पष्ट है कि इनका काल आपिशलि से प्राचीन है और वह विक्रमादित्य से ३००० वर्ष पूर्व का है, ऐसा विद्वानों का मत है।
(६) भारद्वाज (३००० वि० पूर्व) पाणिनीय अष्टाध्यायी में वैयाकरण भारद्वाज का एक स्थान पर उल्लेख मिलता है-ऋतो भारद्वाजस्य' (७।२।६६)। इससे अन्यत्र अष्टाध्यायी में जो भारद्वाज का उल्लेख है वह देशवाची है, आचार्यवाची नहीं। संस्कृत साहित्य में अनेक भारद्वाजों का वर्णन मिलता है किन्तु वे सब वैयाकरण भारद्वाज नहीं हैं। वैयाकरण भारद्वाज तो बार्हस्पत्य भरद्वाज के पुत्र द्रोण भारद्वाज हैं-भरद्वाजस्यापत्यमिति भारद्वाजः ।
समय-इनका समय विक्रम से ३००० वर्ष पूर्व का माना जाता है। रचना-व्याकरणशास्त्र, भारद्वाज वार्तिक, आयुर्वेद संहिता (कायचिकित्सा) अर्थशास्त्र।
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