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________________ अनुभूमिका समय-अष्टाध्यायी के 'शौनकादिभ्यश्छन्दसि' (४।३।१०६) सूत्र में शौनक का उल्लेख किया गया है और शौनक ने ऋक् प्रातिशाख्य में शाकल्य के मत की चर्चा की है। शौनक का समय २९०० वि० पूर्व का है अत: शाकल्य का समय इससे भी पूर्व ३१०० वि०पू० का होना चाहिये। (6) सेनक (२६५० वि० पूर्व) पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में आचार्य सेनक का एक ही स्थल पर उल्लेख किया है-'गिरेश्च सेनकस्य (५।४।११)। इसके अतिरिक्त इनका परिचय उपलब्ध नहीं है। (१०) स्फोटायन (२६५० वि० पूर्व) पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में आचार्य स्फोटायन का एक स्थल पर मत उद्धृत किया है-'अवङ् स्फोटायनस्य' (६।१।१२३)। पं० हरदत्तमिश्र काशिकावृत्ति की व्याख्या पदमञ्जरी में लिखते हैं-'स्फोटोऽयनं पारायणं यस्य स स्फोटायन:' (६।१।१२३) अर्थात् ये स्फोट सिद्धान्त के प्रतिपादक आचार्य थे अत: इनका स्फोटायन नाम प्रसिद्ध हो गया। पं० युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका नाम औदुम्बरायण था। आचार्य हेमचन्द्र और केशव का मत है कि इनका नाम कक्षीवान् था। .. समय-आचार्य स्फोटायन पाणिनि मुनि से प्राचीन हैं। पाणिनि मुनि का समय २९०० वि० पूर्व माना जाता है अत: इनका समय २९५० वि० पूर्व होना चाहिये। अष्टाध्यायी के वार्तिककार पाणिनि मुनि के समय में इन उपरिलिखित आचार्यों के व्याकरणशास्त्र विद्यमान थे। उन सब व्याकरणशास्त्रों का परिष्कार करके पाणिनि मुनि ने यह अष्टाध्यायी नामक अद्भुत व्याकरणशास्त्र की रचना की है। वररुचि (कात्यायन), भारद्वाज, सुनाग, क्रोष्टा, वाडव, व्याघ्रभूति, वैयाघ्रपद्य इन आचार्यों ने पाणिनीय अष्टाध्यायी सम्बन्धी वार्तिक सूत्रों की रचना करके पाणिनीय व्याकरणशास्त्र को पूर्ण व्याकरण बनाने में सहयोग प्रदान किया और पतञ्जलि मुनि ने पाणिनीय अष्टाध्यायी और वार्तिक सूत्रों को लेकर व्याकरण महाभाष्य नामक आकर ग्रन्थ की रचना की। इच्छा पूर्ण हुई मैंने गुरुकुल झज्जर (हरयाणा) में सन् १९४७ से १९५१ पर्यन्त गुरुवर पं० विश्वप्रिय शास्त्री के चरणों में बैठकर पाणिनीय व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया था। विद्यार्थीकाल से ही पाणिनीय व्याकरणशास्त्र की सरल व्याख्या लिखने की इच्छा थी। इसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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