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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् दुर्-दु:षूतिः। (सम:) सु-सुषमम्। वि-विषमम्। निर्-नि:षमम् । दुर्-दुःषमम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (इण्भ्यः) इणन्त (सुविनिर्दुर्य:) सु, वि, निर्, दुर् इनसे परवर्ती (सुपिसूतिसमाः) सुपि, सूति, सम इन शब्दों के (अपदान्तस्य) अपदान्त (स:) सकार के स्थान में (मूर्धन्य:) मूर्धन्य आदेश होता है।
___ उदा०-(सुपि:) सु-सुषुप्त: । सुख से सोया हुआ। वि-विषुप्त: । विशेषत: सोया हुआ। निर्-निःषुप्तः। निश्चय से सोया हुआ। दुर्-दुःषुप्तः । दुःख से सोया हुआ। (सूति:) सु-सुषूति:। सुख से प्रसव होना। वि-विषूतिः। विशेषत: प्रसव होना। निर्-नि:पूतिः । निश्चित प्रसव होना। दुर्-दुःपूतिः । दुःख से प्रसव होना। (सम:) सु-सुषमम् । सर्वथा समान। वि-विषमम् । विगत समान। निर्-नि:षमम् । निश्चित समान। दुर्-दुःषमम् । कठिनता से समान।
___ सिद्धि-(१) सुषुप्त: । यहां सु-उपसर्गपूर्वक भिष्वप् शये' (अदा०प०) धातु से निष्ठा' (३।२।१०२) से 'क्त' प्रत्यय है। वचिस्वपियजादीनां किति' (६।१।१५) से स्वप्' को सम्प्रसारण और 'एकाच उपदेशेऽनुदात्तात् (७।२।१०) से इडागम का प्रतिषेध है। इस सूत्र से इणन्त 'सु' से परवर्ती सुप्' के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। ऐसे ही-विषुप्त:, निःषुप्तः, दुःषुप्तः ।
(२) सुषूति: । यहां सु-उपसर्गपूर्वक 'धूङ् प्राणिगर्भविमोचने (अदा०आ०) धातु से स्त्रियां क्तिन्' (३।३।९४) से 'क्तिन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इणन्त सु' से परवर्ती सूति' के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। ऐसे ही-विषूति: । नि:पूति: । दुःपूति।
(३) सुषमः । यहां सु-उपसर्गपूर्वक 'षम अवैक्लव्ये' (भ्वा०प०) धातु से 'नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः' (३।१।१३४) से पचादिलक्षण 'अच्’ प्रत्यय है। इस सूत्र से इणन्त 'सु' से परवर्ती 'सम' के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। ऐसे ही-विषमम्, नि:षमम्, दुःषमम् । मूर्धन्यादेशः
(३५) निनदीभ्यां स्नातेः कौशले।८६। प०वि०-नि-नदीभ्याम् ५ ।२ स्नाते: ६।१ कौशले ७१।
स०-निश्च नदी च ते निनद्यौ, ताभ्याम्-निनदीभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
तद्धितवृत्ति:-कुशलस्य भाव इति कौशलम्, तस्मिन्-कौशले। 'हायनान्तयुवादिभ्योऽण्' (५।१।१३०) इति भावेऽर्थेऽण् प्रत्ययः ।
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