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________________ ६४२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् धातुः | उपसर्गः/ शब्दरूपम् भाषार्थ: व्यवायः अड्व्यवाय: अभ्यषेणयत् उसने अभित: सेना से गया। परि ,, पर्यषणत् उसने परित: सेना से गया। षणभूत: (सन्) अभिषिषेणयिषति वह अभित: सेना से जाना चाहता है। परिषिषेणयिषति | वह परित: सेना से जाना चाहता है। (८) सेध अभि अभिषेधति वह अभित: शासन करता है। परि परिषेधति वह परित: शासन करता है। अड्व्यवाय: अभ्यषेधत् उसने अभित: शासन किया। उसन आभत: शासन । | परि ,, पर्यषेधत् उसने परित: शासन किया। (९) सिच अभि अभिषिञ्चति वह अभित: सेचन करता है। | परि परिषिञ्चति वह परित: सेचन करता है। अड्व्यवाय: अभ्यषिञ्चत् उसने अभित: सेचन किया। परि ,, पर्यषिञ्चत् उसने परित: सेचन किया। वह अभितः सेचन करना चाहता है। परिषिषिक्षति वह परित: सेचन करना चाहता है। (१०) सञ्ज । अभि अभिषजति |वह अभितः आलिङ्गन करता है। परिपरिषजति वह परित: आलिङ्गन करता है। अड्व्यवाय: अभ्यषजत् उसने अभित: आलिङ्गन किया। परि ,, पर्यषजत् उसने परित: आलिङ्गन किया। षणभूत: (सन्) अभिषिषक्षति वह अभित: आलिङ्गन करना चाहता है। परिषिषक्षति दह परित: आलिङ्गन करना चाहता है। (११) स्वञ्ज । अभि अभिष्वजते वह अभित: आलिङ्गन करता है। परिष्वजते वह परित: आलिङ्गन करता है। अड्व्यवाय: अभ्यष्वजत उसने अभित: आलिङ्गन किया। परि ,, पर्यष्वजत उसने परित: आलिङ्गन किया। षणभूतः (सन्) अभिषिष्वक्षते |वह अभित: आलिङ्गन करना चाहता है। परिषिष्वक्षते वह परित: आलिङ्गन करना चाहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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