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अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः धातुः | उपसर्ग:/ शब्दरूपम्
भाषार्थ: व्यवायः (२) सुवति | अभि अभिषुवति वह अभित: प्रेरणा करता है।
परिषुवति | वह परित: प्रेरणा करता है। अड्व्यवाय: | अभ्यषुवत् उसने अभित: प्रेरणा की।
परि , पर्यषुवत् उसने परित: प्रेरणा की। (३) स्यति अभि अभिष्यति | वह अभित: समाप्त करता है।
परिपरिष्यति | वह परित: समाप्त करता है। अड्व्यवाय: अभ्यष्यत् | उसने अभित: समाप्त किया।
परि , पर्यष्यत् उसने परित: समाप्त किया। (४) स्तौति अभि
अभिष्टौति
वह अभित: स्तुति करता है। परिष्टौति वह परित: स्तुति करता है। अड्व्यवाय: | अभ्यष्टौत् उसने अभित: स्तुति की।
परि .. पर्यष्टौत् उसने परित: स्तुति की। (५) स्तोभति अभि अभिष्टोभते वह अभित: थामता है।
परि परिष्टोभते वह परित: थामता है। अव्यवाय: | अभ्यष्टोभत उसने अभित: थामा। परि , | पर्यष्टोभत उसने परित: थामा।
अभिष्ठाष्यति वह अभित: ठहरेगा।
परिष्ठाष्यति वह परित: ठहरेगा। अड्व्यवाय: |
| अभ्यष्ठात् उसने अभित: ठहरा। परि ,, | पर्यष्ठात् उसने परित: ठहरा। अभ्यासव्यवाय:
| अभितष्ठौ वह अभित: ठहरा।
परितष्ठौ वह परित: ठहरा। (७) सेनय | अभिषेणयति । वह अभित: सेना से जाता है।
परिषेणयति । वह परित: सेना से जाता है।
(६) स्था
आभ
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