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________________ ६४१ अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः धातुः | उपसर्ग:/ शब्दरूपम् भाषार्थ: व्यवायः (२) सुवति | अभि अभिषुवति वह अभित: प्रेरणा करता है। परिषुवति | वह परित: प्रेरणा करता है। अड्व्यवाय: | अभ्यषुवत् उसने अभित: प्रेरणा की। परि , पर्यषुवत् उसने परित: प्रेरणा की। (३) स्यति अभि अभिष्यति | वह अभित: समाप्त करता है। परिपरिष्यति | वह परित: समाप्त करता है। अड्व्यवाय: अभ्यष्यत् | उसने अभित: समाप्त किया। परि , पर्यष्यत् उसने परित: समाप्त किया। (४) स्तौति अभि अभिष्टौति वह अभित: स्तुति करता है। परिष्टौति वह परित: स्तुति करता है। अड्व्यवाय: | अभ्यष्टौत् उसने अभित: स्तुति की। परि .. पर्यष्टौत् उसने परित: स्तुति की। (५) स्तोभति अभि अभिष्टोभते वह अभित: थामता है। परि परिष्टोभते वह परित: थामता है। अव्यवाय: | अभ्यष्टोभत उसने अभित: थामा। परि , | पर्यष्टोभत उसने परित: थामा। अभिष्ठाष्यति वह अभित: ठहरेगा। परिष्ठाष्यति वह परित: ठहरेगा। अड्व्यवाय: | | अभ्यष्ठात् उसने अभित: ठहरा। परि ,, | पर्यष्ठात् उसने परित: ठहरा। अभ्यासव्यवाय: | अभितष्ठौ वह अभित: ठहरा। परितष्ठौ वह परित: ठहरा। (७) सेनय | अभिषेणयति । वह अभित: सेना से जाता है। परिषेणयति । वह परित: सेना से जाता है। (६) स्था आभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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