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________________ अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः દર૭ उदा०-दिवस्परि प्रथमं जज्ञे (ऋ० १० ।४५ ॥१)। अग्निहिमवतस्परि (शौ०सं० ४।९।९)। दिवस्परि (ऋ० ११२१ ।१०)। महस्परि। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि और (छन्दसि) वेदविषय में (पञ्चम्या:) पञ्चम्यन्त (पदस्य) पद के (विसर्जनीयस्य) विसर्जनीय के स्थान में (अध्यर्थे) अधि-अर्थक (परौ) परि शब्द परे होने पर (स:) सकारादेश होता है। उदा०-दिवस्परि प्रथमं जज्ञे (ऋ० १०॥४५॥१)। धुलोक से ऊपर। अग्निर्हिमवतस्परि (शौ०सं० ४।९।९)। हिमवान् के ऊपर। दिवस्परि (ऋ० १।१२१ ।१०)। धुलोक से ऊपर। महस्परि । मह: नामक लोक से ऊपर। सिद्धि-दिवस्परि आदि शब्दों में अधि-अर्थक परि' शब्द परे होने पर पञ्चम्यन्त 'दिव:' के विसर्जनीय को सकारादेश स्पष्ट है। ऐसे ही-हिमवतस्परि, महस्परि। 'बहुलं सकारादेशः (२०) पातौ च बहुलम्।५२। प०वि०-पातौ ७१ च अव्ययपदम्, बहुलम् ११। अनु०-पदस्य, संहितायाम्, विसर्जनीयस्य, स:, छन्दसि, पञ्चम्या इति चानुवर्तते। ___अन्वय:-संहितायां छन्दसि पञ्चम्या: पदस्य विसर्जनीयस्य पातौ च बहुलं सः। अर्थ:-संहितायां छन्दसि च विषये पञ्चम्यन्तस्य पदस्य विसर्जनीयस्य स्थाने, पातौ परतश्च बहुलं सकारादेशो भवति । उदा०-दिवस्पातु (ऋ० १० ११५८ ।९)। राज्ञस्पातु । बहुलवचनान्न च भवति-परिषद: पातु। आर्यभाषा अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि और (छन्दसि) वेदविषय में (पञ्चम्या:) पञ्चम्यन्त (पदस्य) पद के (विसर्जनीयस्य) विसर्जनीय के स्थान में (पातौ) पातु शब्द परे होने पर (स:) सकारादेश होता है। उदा०-दिवस्पातु (ऋ० १०।१५८।९)। सूर्य हमारी धुलोक से रक्षा करे। राज्ञस्पातु। वह राजा से रक्षा करे। बहुलवचन से कहीं सकारादेश नहीं भी होता है-परिषद: पातु । वह परिषद् से रक्षा करे। सिद्धि-दिवस्पातु आदि में पञ्चम्यन्त दिवः' आदि के विसर्जनीय के स्थान में सकारादेश साष्ट है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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