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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) सर्पिष्काम्यति यहां सर्पिस्' शब्द से काम्यच्च' (३।१।९) से इच्छा-अर्थ में काम्यच्' प्रत्यय है। ऐसे ही-यजुष्काम्यति ।
(४) सर्पिष्पाशम् । यहां सर्पिस्' शब्द से 'याप्ये पाशप्' (५।३।४७) से याप्य कुत्सित-अर्थ में पाशप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-यजुष्पाशम् । स-आदेश:
(८) नमस्पुरसोर्गत्योः।४०। प०वि०-नमस्-पुरसो: ६।२ गत्यो: ६।२।
स०-नमश्च पुरश्च तौ नमस्पुरसौ, तयो:-नमस्पुरसो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-पदस्य, संहितायाम्, विसर्जनीयस्य, स:, कुप्वोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां गत्योर्नमस्पुरसो: पदयोर्विसर्जनीयस्य कुप्वो: स: ।
अर्थ:-संहितायां विषये गतिसंज्ञकयोर्नमस्पुरसो: पदयोर्विसर्जनीयस्य स्थाने, कुप्वो: परत: सकारादेशो भवति।।
उदा०-(नम:) नमस्कर्ता, नमस्कर्तुम्, नमस्कर्तव्यम्। (पुरः) पुरस्कर्ता, पुरस्कर्तुम्, पुरस्कर्तव्यम् । पवर्गे नास्त्युदाहरणम्।
आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (गत्योः) गति-संज्ञक (नमस्पुरसो:) नमस्, पुरस् इन (पदयोः) पदों के (विसर्जनीयस्य) विसर्जनीय के स्थान में (कुप्वो:) कवर्ग और पवर्ग वर्ण परे होने पर (स:) सकारादेश होता है।
उदा०-(नम:) नमस्कर्ता । नमस्कार करनेवाला। नमस्कर्तम् । नमस्कार करने के लिये। नमस्कर्तव्यम् । नमस्कार करना चाहिये। (पुर:) पुरस्कर्ता । पुरस्कृत करनेवाला। पुरस्कर्तुम् । पुरस्कृत करने के लिये। पुरस्कर्तव्यम् । पुरस्कृत करना चाहिये। पवर्ग का उदाहरण नहीं है।
सिद्धि-नमस्कर्ता । यहां नमस्-उपपद डुकृञ् करणे (तना०3०) धातु से 'ण्वुल्तचौं (३।१।१३३) से तुच्’ प्रत्यय है। इस सूत्र से गतिसंज्ञक नमस्' पद के विसर्जनीय को कवर्ग (क) परे होने पर सकारादेश होता है। ऐसे ही तुमुन्' प्रत्यय में-नमस्कर्तुम् । तव्यत्' प्रत्यय में-नमस्कर्तव्यम् । पुरः शब्द से तृच्' प्रत्यय में-पुरस्कर्ता। तुमुन्' प्रत्यय में-पुरस्कर्तुम् । 'तव्यत्' प्रत्यय में-पुरस्कर्तव्यम् ।
'नमस्’ पद की साक्षात्प्रभृतीनि च (१।४।७३) से और 'पुरस्' पद की पुरोऽव्ययम् (१।४।६६) से गतिसंज्ञा है।
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