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________________ ६१० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-डकारान्ताद् डुट्-प्रत्यङ्ङास्ते। णकारान्ताद् णुट्-वण्णास्ते। वण्णवोचत्। नकारान्ताद् नुट्-कुर्वन्नास्ते, कुर्वन्नवोचत्। कृषन्नास्ते, कृषन्नवोचत्। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (ह्रस्वात्) ह्रस्व वर्ण से परे जो (डम्) डम् वर्ण है तदन्त (पदात्) पद से परवर्ती (अच:) अच् वर्ण को (नित्यम्) सदा (ङमुट्) डमुट् आगम होता है। अर्थात् डम्-ड, ण, न् आगम होते हैं। उदा०- (ङकारान्त) डुट्-प्रत्यङ्ङास्ते। वह पीछे बैठता है। (णकारान्त) गुट्-वण्णास्ते। शब्द करनेवाला बैठता है। वण्णवोचत्। शब्द करनेवाले ने कहा। (नकारान्त) नुट्-कुर्वन्नास्ते। कार्य करता हुआ बैठता है। कुर्वन्नवोचत् । कार्य करते हुये न कहा। कृषन्नास्ते। हल चलाता हुआ बैठता है। कृषन्नवोचत् । हल चलाते हुये ने कहा। सिद्धि-प्रत्यङ्ङास्ते। यहां इस सूत्र से ह्रस्व अकार से परे जो डकार है तदन्त पद से परवर्ती अच् (आ) को डुट (ङ) आगम होता है। ऐसे ही वण्णास्ते में णुट् (ण) आगम है। 'वण' पद में वण शब्दार्थ:' (भ्वा०प०) धातु से 'अन्येभ्योऽपि दश्यते (३।२।१७८) से क्विप्' प्रत्यय है। 'क्विम्' का सर्वहारी लोप होता है। कुर्वन्नास्ते आदि में नुट् (न्) आगम है। {आदेशप्रकरणम् वकारादेशविकल्प: (१) मय उञो वो वा।३३। प०वि०-मय: ५।१ उत्रः ६१ व: ११ वा अव्ययपदम्। अनु०-पदस्य, संहितायाम्, अचीति चानुवर्तते । अन्वयः-संहितायां पदस्य मय उञो वा वः। अर्थ:-संहितायां विषये पदस्य मय: परस्य उत्र: स्थाने विकल्पेन वकारादेशो भवति। उदा०-शम्वस्तु वेदिः (द्र०-ऋ० ७ १३५ १७) शमु अस्तु वेदि: । तद्वस्य परेत:, तदु अस्य परेतः। किम्वावपनम् (यजु० २३।९) किमु आम्। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (पदस्य) पद के (मय:) भय् वर्ण से परे (उञः) उञ् को (वा) विकल्प से (व:) वकारादेश होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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