________________
अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः
६०६ तुक-आगम:
(४) शि तुक् ।३१। प०वि०-शि ७।१ तुक् ११। अनु०-पदस्य, संहितायाम्, वा, न इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां न: पदस्य शि वा तुक् ।
अर्थ:-संहितायां विषये नकारान्तस्य पदस्य शकारे परतो विकल्पेन तुगागमो भवति।
उदा०-भवाञ्च्छेते, भवाञ् छेते। भवाञ्च्शे ते, भवाञ् शेते।
आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (न:) नकारान्त (पदस्य) पद को (शि) श वर्ण परे होने पर (वा) विकल्प से (तुक्) तुक् आगम होता है।
उदा०-भवाञ्च्छेते, भवाञ् छेते। भवाञ्चशेते, भवान शेने। आप सोते हैं।
सिद्धि-भवाञ्च्छे ते। भवान्+शेते। भवान्+छेते। भवान्+तुक्+छेते। भवान्+त्+छेते। भवान्+च+छेते। भवाञ्+च+छेते। भवाञ्च्छे ते।
यहां प्रथम 'भवान्’ नकारान्त पद से परवर्ती शकार को शश्छोऽटि' (८।४।६२) से छकारादेश होता है। पूर्वत्रासिद्धम् (८।२।१) से उसे असिद्ध मानकर इस सूत्र से नकारान्त 'भवान्' पद को तुक् आगम होता है। स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।४०) से तकार को चकार और नकार को कार भी होता है। विकल्प पक्ष में तुक्-आगम नहीं है-भवाञ् शेते। पूर्ववत् नकार को चवर्ग अकार आदेश होता है।
'शश्छोटि' (८।४।६३) से शकार को विकल्प से छकारादेश होता है। विकल्प पक्ष में छकारादेश नहीं है-भवात्रच शेते (तुक्)। भवाञ् शेते (तुक नहीं)। ङमुट्-आगमः
(५) ङमो हस्वादचि ङमुण नित्यम् ।३२।
प०वि०- ङम: ५।१ ह्रस्वात् ५।१ अचि ७१ ङमुट ११ नित्यम् १।१।
अनु०-पदस्य, संहितायामिति चानुवर्तते। अन्वयः-संहितायां ह्रस्वाद् ङम: पदादचो नित्यं ङमुट् ।
अर्थ:-संहितायां विषये ह्रस्वात् परो यो डम्, तदन्तात् पदात् परस्याऽचो नित्यं ङमुडागमो भवति । ङणनेभ्य: परा यथासंख्यं ङणना भवन्तीत्यर्थः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org