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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
अर्थ:-संहितायां विषये डकारान्तात् पदात् परस्य सकारादेः पदस्य विकल्पेन धुडागमो भवति ।
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उदा० - श्वलिट्त्साये, श्वलिट् साये । मधुलिट्त्साये, मधुलिट् साये I आर्यभाषाः अर्थ- ( संहितायाम् ) सन्धि - विषय में (ड: ) डकारान्त ( पदात्) पद से परवर्ती (सः) सकारादि ( पदस्य ) पद को (वा) विकल्प से (धुट्) धुट् आगम होता है।
उदा० - श्वलिट्त्साये, श्वलिट् साये । श्वलिट् अन्त में । श्वलिट् = कुत्तों को चाटनेवाला (घोरी) । मधुलिट्त्साये, मधुलिट् साये । मधुलिट् अन्त में | मधुलिट् - मधु (शहद) चाटनेवाला ।
सिद्धि - श्वलित्साये । यहां इस सूत्र से 'श्वलिड्' के पदान्त डकार को सकारादि 'साये' पद परे होने पर 'धुट्' आगम होता है। 'खरि च' (८/४/५५) से धकार को चर् तकार और डकार को भी चर् टकार होता है। विकल्प - पक्ष में 'धुट्' आगम नहीं है - श्वलिट् साये । ऐसे ही - मधुलित्साये, मधुलिट् साये ।
धुडागमविकल्पः
(३) नश्च । ३० ।
प०वि० - नः ५ ।१ च अव्ययपदम् ।
अनु०-पदस्य, संहितायाम्, वा, सि, धुडिति चानुवर्तते । अन्वयः - संहितायां नः पदाच्च सः पदस्य वा धुट् । अर्थ:-संहितायां विषये नकारान्तात् पदात् परस्य च सकारादेः पदस्य विकल्पेन धुडागमो भवति ।
उदा०-भवान्त्साये, भवान् साये । महान्त्साये, महान् साये ।
आर्यभाषाः अर्थ- (संहितायाम् ) सन्धि - विषय में (नः) नकारान्त ( पदात्) पद से (च) भी परवर्ती (सः) सकारादि ( पदस्य ) पद को (वा) विकल्प से (धुट्) धुट् आगम होता है।
उदा०- - भवान्त्साये, भवान् साये । आप अन्त में । महान्त्साये, महान् साये । महान् अन्त में ।
सिद्धि-भवान्त्साये । यहां इस सूत्र से 'भवान्' के पदान्त नकार से परे सकारादि 'साये' पद परे होने पर 'घुट्' आगम होता है । 'खरि च' ( ८1४ 1५५) से धकार को चर् तकारादेश होता है। विकल्प-पक्ष में 'धुट्' आगम नहीं है- भवान् साये। ऐसे ही- महान्त्साये, महान् साये ।
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