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________________ अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः अन्वयः-संहितायां नॄन् पदस्य नः पे रु: । अर्थ:-संहितायां विषये नॄन् इत्येतस्य पदस्य नकारस्य पकारे परतो रुरादेशो भवति । उदा०-नृ: पाहि, नृः पाहि । नृ पाहि, नृ पाहि । नृः प्रीणीहि, नृः प्रीणीहि । नृ प्रीणीहि, नृ प्रीणीहि । आर्यभाषाः अर्थ- (संहितायाम् ) सन्धि- विषय में (नॄन्) नॄन् इस ( पदस्य) पद के (नः) नकार को (प) पकार वर्ण परे होने पर (रु.) रु- आदेश होता है। ५६३ उदा०- -नृ: पाहि (ऋ० ८/८४ / ३), नृ: पाहि । नृप्रपाहि नृपाहि । तू नरों की रक्षा कर । नृ: प्रीणीहि, नृः प्रीणीहि । नृपप्रीणीहि, नृपप्रीणीहि । तू नरों को तृप्त कर, प्रसन्न कर । सिद्धि-नृः पाहि । नॄन्+पहि। नृरु+पाहि । नृर्+पाहि । नृ:+पाहि । नृः पाहि । यहां 'नॄन्' इस पद के नकार को पकार परे होने पर इस सूत्र से 'रु' आदेश होता है । खरवसानयोर्विसर्जनीय:' ( ८1३ 1१५ ) से 'रु' के रेफ को खलक्षण विसर्जनीय आदेश होता है। 'अत्रानुनासिक: पूर्वस्य तु वा' (८1३ 1 २ ) से 'रु' से पूर्ववर्ती अच् को अनुनासिक आदेश है। विकल्प पक्ष में 'अनुनासिकात् परोऽनुस्वारः' (८ | ३ | ४) से अनुस्वार आदेश है-नं पाहि । 'कुप्वोः क पौ च' (८ | ३ | ३७ ) से विसर्जनीय को ५ उपध्मानीय भी होता है - नृ पाहि । नृ पाहि । ऐसे ही - नृ: प्रीणीहि आदि । रु- आदेश: (११) स्वतवान् पायौ । ११ । प०वि०-स्वतवान् १ ।१ पायौ ७ । १ । अनु०-पदस्य, संहितायाम्, रुः, न इति चानुवर्तते । अन्वयः-संहितायां स्वतवान् पदस्य नः पायौ रु: । अर्थः-संहितायां विषये स्वतवान् इत्येतस्य पदस्य नकारस्य पायुशब्दे परतो रुरादेशो भवति । उदा० - स्वतवाँ: पायुरग्ने (ऋ०४ । २ । ६ ) । आर्यभाषाः अर्थ-( संहितायाम् ) सन्धि - विषय में (स्वतवान् ) स्वतवान् इस ( पदस्य) पद के नकार को (पायौ) पायु शब्द परे होने पर (रु.) रु- आदेश होता है । उदा० - स्वतवाँ: पायुरग्ने (ऋ०४/२:६) । स्वतवान् -- अपने गुणों से वृद्ध राजा । सिद्धि - स्वतवाँ: पायुः | यहां इस सूत्र से स्वतवान् पद के नकार को पायु शब्द परे होने पर 'ह' आदेश होता है। पूर्ववत् 'रु' के रेफ को विसर्जनीय और अनुनासिक आदेश है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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