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________________ अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः ५७५ अर्थ:-भाषायां विषये विचार्यमाणानां वाक्यानां यत् पूर्वं वाक्यं तस्य टे: प्लुतो भवति, स चोदात्तो भवति । उदा०-अहिर्नु३ रज्जुर्नु ? लोष्टो नु३ कपोतो नु ? प्रयोगापेक्षं वाक्यस्य पूर्वत्वं बोद्ध्यम्। आर्यभाषा: अर्थ-(भाषायाम्) लौकिक भाषा के विषय में (विचार्यमाणानाम्) प्रमाण से वस्तु की परीक्षा करने विषयक (वाक्यानाम्) वाक्यों में से (तु) तो जो (पूर्वम्) पूर्वेक्त वाक्य है उसके (ट:) टि-भाग को (प्लुत:) प्लुत होता है और वह (उदात्त:) उदात्त होता है। उदा०-अहिर्नु३ रज्जुर्नु ? यह सर्प है वा रस्सी है ? लोप्टो नु३ कपोतो नु? यह ढेला है वा कबूतर है? .. प्रयोग उच्चारण की अपेक्षा से वाक्य का पूर्वत्व समझें। प्लुतः (उदात्तः) (१८) प्रतिश्रवणे च।६६। प०वि०-प्रतिश्रवणे ७१ च अव्ययपदम्। अनु०-वाक्यस्य, टे., प्लुत:, उदात्त इति चानुवर्तते। अन्वयः-प्रतिश्रवणे च वाक्यस्य टे: प्लुत उदात्त: । अर्थ:-प्रतिश्रवणेऽर्थे च यद् वाक्यं वर्तते तस्य टे: प्लुतो भवति, स चोदात्तो भवति। उदा०-(अभ्युपगम:) गां मे देहि भोः, अहं ते ददामि३ । (श्रवणाभिमुख्यम्) नित्य: शब्दो भवितुमर्हति, देवदत्त भो: किमात्थ३ ? प्रतिश्रवणम्=अभ्युपगमः, प्रतिज्ञानम्, श्रवणाभिमुख्यं चोच्यते । अत्र यथासम्भवं सर्वेऽर्था गृह्यन्ते। आर्यभाषाअर्थ-(प्रतिश्रवणे) अभ्युपगम: स्वीकार करना, प्रतिज्ञा करना और श्रवणाभिमुख होने अर्थ में जो (वाक्यस्य) वाक्य है उसके (ट:) टि-भाग को (प्लुत:) प्लुत होता है और वह (उदात्त:) उदात्त होता है। उदा०-(अभ्युपगम) गां मे देहि भो., अहं ते ददामि३ । आप मुझे गोदान करें, मैं तुझे गोदान करता हूं। (श्रवणाभिमुख) नित्य: शब्दो भवितुमर्हति, देवदत्त भोः किमात्थ३ ? शब्द नित्य हो सकता है, हे देवदत्त ! तू इस विषय में क्या कहता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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