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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् __ आर्यभाषा: अर्थ-(भत्सने) धमकाना अर्थ में विद्यमान (अङ्गयुक्तम्) अङ्ग' शब्द से युक्त (आकाङ्क्षम्) साकाङ्क्ष जो (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद है, उसको (प्लुत:) प्लुत होता है और वह (उदात्तः) उदात्त होता है।
उदा०-अङ्ग कूज३, अङ्ग व्याहर३ इदानीं ज्ञास्यसि जाल्म। अङ्ग=प्रिय ! तू चहचा ले, बक ले, इसका फल तुझे अब ज्ञात होगा। यहां अङ्ग शब्द अमर्ष (भर्त्सन) का द्योतक है। प्लुतः (उदात्तः)
(१६) विचार्यमाणानाम् ।६७। प०वि०-विचार्यमाणानाम् ६।३। अनु०-वाक्यस्य, टे:, प्लुत:, उदात्त इति चानुवर्तते। अन्वय:-विचार्यमाणानां वाक्यानां टे: प्लुत उदात्त: । अर्थ:-विचार्यमाणानां वाक्यानां टे: प्लुतो भवति, स चोदात्तो भवति । उदा०-होतव्यं दीक्षितस्य गृहा३इ। तिष्ठेद् यूपाइइ । अनुहरेद् यूपाइ। प्रमाणेन वस्तुपरीक्षणं विचार इति कथ्यते।। · आर्यभाषा: अर्थ-(विचार्यमाणानाम्) प्रमाण से वस्तु की परीक्षा करने विषयक (वाक्यानाम्) वाक्यों के (ट:) टि-भाग को (प्लुत:) प्लुत होता है और वह (उदात्त:) उदात्त होता है।
उदा०-होतव्यं दीक्षितस्य ग्रहा३।। यह विचारणीय है कि दीक्षित के घर में हवन करना चाहिये वा नहीं। तिष्ठेद् यूपा३३ । वह यज्ञीय स्तम्भ पर ठहरे वा नहीं। अनुहरेद् यूपा३इ। वह यूप पर अनुहरण करे वा नहीं।
गृहे आदि पदों में इस सूत्र से एच् वर्ण को प्लुत-विधान किया गया है। अत: 'एचोप्रगृह्यस्यादूराद्धृते पूर्वस्यार्धस्यादुत्तरस्येदुतौ (८।२।१०७) से एच् अर्थात् एकार के पूर्वांश आकार को प्लुत होता है और शेष उत्तरांश को इकारादेश होता है। प्लुतः (उदात्तः)
(१७) पूर्वं तु भाषायाम्।६८/ प०वि०-पूर्वम् ११ तु अव्ययपदम्, भाषायाम् ७१। अनु०-वाक्यस्य, टे:, प्लुत:, उदात्त:, विचार्यमाणानामिति चानुवर्तते। अन्वय:-भाषायां विचार्यमाणानां वाक्यानां पूर्वं तु प्लुत उदात्त: ।
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