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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(पृष्टप्रतिवचने) प्रश्न का उत्तर देने अर्थ में विद्यमान हि:) हि इस (पदस्य) पद को (विभाषा) विकल्प से (प्लुत:) प्लुत होता है और वह (उदात्त:) उदात्त होता है।
उदा०-अकार्षी: कटं देवदत्त ? अकार्ष हि३, अकार्ष हि। हे देवदत्त ! क्या तूने चटाई बना ली है ? हां बना ली है। अलावी: केदारं देवदत्त ? अलाविषं हि३, अलाविषं हि। हे देवदत्त ! क्या तूने खेत काट लिया है ? हां काट लिया है। प्लुतः (उदात्तः)
(१३) निगृह्यानुयोगे च।६४। प०वि०-निगृह्य अव्ययपदम् (ल्यप्प्रत्ययान्तमेतत्) अनुयोगे ७१ च अव्ययपदम्।
अनु०-वाक्यस्य, टे:, प्लुत:, उदात्त: विभाषेति चानुवर्तते।
अन्वय:-निगृह्यानुयोगे च वाक्यस्य टे: प्लुत उदात्त: । .. अर्थ:-निगृह्यानुयोगेऽर्थे च यद् वाक्यं वर्तते तस्य टे: प्लुतो भवति, स चोदात्तो भवति। स्वमतात् प्रच्यावनम्=निग्रहः। अनुयोग: तस्य मतस्याविष्करणम्।
उदा०-अनित्य: शब्द इति केनचित् प्रतिज्ञातम्, तं युक्तिभिर्निगृह्योपालिप्सुः प्रतिवादी सासूयमनुयुङ्क्ते-अनित्य: शब्द इत्यात्थ३, अनित्य: शब्द इत्यात्थ । अद्य श्राद्धमित्यात्थ३, अद्य श्राद्धमित्यात्थ । अद्यामावास्येत्यात्थ३, अद्यामावस्येत्यात्थ । अद्य अमावस्येत्येवं वादी युक्त्या स्वमतात् प्रचाव्यैवमनुयुज्यते।
आर्यभाषाअर्थ-(निगृह्यानुयोगे) किसी वादी को उसके मत से प्रच्युत करनेवाले प्रतिवादी के द्वारा असूयापूर्वक उसके मत को प्रकाशित करने अर्थ में विद्यमान (च) भी (वाक्यस्य) वाक्य के टि:) टि-भाग को (प्लुत:) प्लुत होता है और वह (उदात्त:) उदात्त होता है।
उदा०-'शब्द अनित्य है' ऐसी किसी ने प्रतिज्ञा की। प्रतिवादी युक्तियों से उसके अपने मिथ्या मत से प्रच्युत करके असूयापूर्वक उसके मत को प्रकाशित करता है-अनित्य: शब्द इत्यात्थ३, अनित्य: शब्द इत्यात्थ । शब्द अनित्य है ऐसा तू कहता है ? अद्य श्राद्धमित्यात्थ३, अद्य श्राद्धमित्याथ। आज श्राद्ध है ऐसा तू कहता है ? अयामावास्येत्यात्य३, अद्यामावास्येत्यात्य। आज अमावस्या है ऐसा तू कहता है?
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