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________________ ५७० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् प्लुतः (उदात्तः) (१०) ब्रूहिप्रेष्यश्रौषड्वौषडावहानामादेः ।६१। प०वि०-ब्रूहि-प्रेष्य-श्रौषट्-वौषट्-आवहानाम् ६।३ आदे: ६।१। स०-ब्रूहिश्च प्रेष्यश्च श्रौषट् च वौषट् च आवहश्च ते ब्रूहिप्रेष्यश्रौषड्वौषडावहाः, तेषाम्-ब्रूहिप्रेष्यश्रौषड्वौषडावहानाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-पदस्य, प्लुत:, उदात्त:, यज्ञकर्मणीति चानुवर्तते। अन्वय:-यज्ञकर्मणि ब्रूहिप्रेष्यश्रौषड्वौषडावहानां पदानामादे: प्लुत उदात्त:। अर्थ:-यज्ञकर्मणि ब्रूहिप्रेष्यश्रौषड्वौषडावहानां पदानामादे: प्लुतो भवति, स चोदात्तो भवति। उदा०-(ब्रूहि) अग्नयेऽनुब्रूयहि (श०ब्रा० २।५।३।१२)। (प्रष्य) अग्नये गोमयान् प्रे३ष्य । (श्रौषट्) अस्तु श्रौषट् (तै०सं० १।६।११।१)। (वौषट्) सोमस्याग्ने वीही३ वौ३षट् (ए०ब्रा० ३।५।६)। (आवह) अग्निमा३ वह (तै०ब्रा० ३।५।३।२)। आर्यभाषा: अर्थ-(यज्ञकर्माण) यज्ञ-कर्म में (ब्रूहि०) ब्रूहि, प्रेष्य, श्रौषट्, वौषट्, आवह इन (पदानाम्) पदों के (आदे:) आदिम अच् को (प्लुत:) प्लुत होता है और वह (उदात्त:) उदात्त होता है। उदा०-(ब्रूहि) आनयेऽनुबूइहि (शब्रा० २।५।३।१२)। अनुब्रूहि यह लोट् लकार मध्यम पुरुष का एकवचन है। प्रिष्य) अग्नये गोमयान् प्रेक्ष्य । प्रेष्य यह प्र-उपसर्गपूर्वक इषु गतौ' (दि०प०) धातु का लोट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन है। दिवादिभ्यः श्यन् (३।१।६९) से श्यन् विकरण प्रत्यय है। प्रेष्य-प्रदान कर। (श्रौषट्) अस्तु श्रौषट् (तै०सं०१६।११।१)। श्रौषट् यह स्वाहावाची निपात है। विौषट) सोमस्याग्ने वीही३ वौषट् (ए०ब्रा० ३।५।६)। वौषट् यह स्वाहावाची निपात है। (आवह) अग्निमा३ वह (तैब्रा० ३।५ ।३।२)। यह आङ्-उपसर्गपूर्वक वह प्रापणे (भ्वा०प०) धातु का लोट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन है। आवह प्राप्त कर। प्लुतः (उदात्तः) (११) अग्नीत्प्रेषणे परस्य च।१२। प०वि०-अग्नीत्प्रेषणे ७१ परस्य ६१ च अव्ययपदम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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