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________________ ५६४ अधिकार: पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् {प्लुतादेशप्रकरणम्} (१) वाक्यस्य टेः प्लुत उदत्तः । ८२ । प०वि० - वाक्यस्य ६ । १ टे: ६ । १ प्लुतः १ । १ उदात्तः १ । १ । अर्थ:-वाक्यस्य टेः प्लुत उदात्त इत्यधिकारोऽयम्, आ पादपरिसमाप्तेः । यदितोऽग्रे वक्ष्यति - 'वाक्यस्य टेः प्लुदात्त उदात्तः' इत्येवं तद्वेदितव्यम् । वक्ष्यति-'प्रत्यभिवादेऽशूद्रे (८।२।८२ ) इति । अभिवादये देवदत्तोऽहम्, भो आयुष्मानेधि देवदत्त३ । यथा आर्यभाषा: अर्थ - (वाक्यस्य०) 'वाक्यस्य टेः प्लुत उदात्त:' यह अधिकार सूत्र है। इसका इस पाद की समाप्ति पर्यन्त अधिकार है। पणिनि मुनि इससे आगे जो कहेंगे- वह (वाक्यस्य) वाक्य के (टि:) टि-भाग को (प्लुतः) प्लुत (उदात्तः) उदात्त होता है, ऐसा जानें। जैसे कि पाणिनि मुनि कहेंगे- 'प्रत्यभिवादेऽशूद्रे (८/२/८२) अर्थात् गुरु प्रत्यभिवादन में जब आशीर्वाद देता है तब शूद्र-विषय को छोड़कर उस वाक्य के टि-भाग को प्लुत उदात्त होता है। जैसे- अभिवादये देवदत्तोऽहम, भो आयुष्मानेधि देवदत्त३ । हे गुरुवर ! मैं देवदत्त आपको अभिवादन करता हूं, हे देवदत्त३ तू आयुष्मान् हो। प्लुतः (उदात्तः) - (२) प्रत्यभिवादेऽशूद्रे । ८३ । प०वि० - प्रत्यभिवादे ७ । १ अशूद्रे ७ । १ । सo - न शूद्र इति अशूद्र:, तस्मिन् - अशूद्रे (नञ्तत्पुरुषः ) । अनु० - वाक्यस्य, टेः, प्लुतः, उदात्त इति चानुवर्तते । अन्वयः - अशूद्रे प्रत्यभिवादे वाक्यस्य टे: प्लुत उदात्तः अर्थ:-शूद्रविषयवर्जिते प्रत्यभिवादे यद् वाक्यं वर्तते, तस्य टेः प्लुतो भवति स चोदात्तो भवति । उदा०-अभिवादये देवदत्तोऽहम् आयुष्मानेधि भो देवदत्त३ । आर्यभाषाः अर्थ- (अशूद्रे) शूद्र विषय से भिन्न (प्रत्यभिवादे) गुरु और शिष्य को प्रत्यभिवादन में अपने शिष्य को जिस वाक्य से आशीर्वाद देता है उस ( वाक्यस्य) वाक्य के (टि.) टि-भाग को (प्लुतः) प्लुत होता है और वह (उदात्तः) उदात्त होता है। उदा० - अभिवादये देवदत्तोऽहम्, आयुष्मानेधि भो देवदत्त३ । हे गुरुवर ! मैं देवदत्त आपको अभिवादन करता हूं, हे देवदत्त३ तू आयुष्मान् हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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