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अष्टमाध्यायस्व द्वितीयः पादः
५६३ एकादेश होता है। 'औट्' प्रत्यय में-अमू । दीर्घ औकार को दीर्घ ऊकारादेश होता है। 'शस्' प्रत्यय में-अमून् । तस्माच्छसो नः पुंसि (६।१।१०१) से सकार को नकारादेश है। 'टा' प्रत्यय में-अमुना। शेषो ध्यसखि' (१।४।७) से घि-संज्ञा होकर आङो नाऽस्त्रियाम्' (७।३।१२०) से टा (आङ्) के ना' आदेश होता है। नमुने (८।२।३) से ना-आदेश करते समय इस सूत्र से विहित 'मु’ आदेश असिद्ध नहीं होता है, अपितु सिद्ध ही रहता है। 'भ्याम्' प्रत्यय में-अमूभ्याम् । सुपि च (७।३।१०२) से दीर्घ होता है। ईत्-आदेश:--
(६) एत ईद् बहुवचने।८१। प०वि०-एत: ६१ ईत् ११ बहुवचने ७।१। अनु०-अदस:, असे:, दात्, उ:, द:, म इति चानुवर्तते। अन्वय:-असेरदसो दाद् एतो बहुवचने ईत, दो मः।
अर्थ:-असे:=असकारान्तस्यादसो दकारात् परस्यैकारस्य स्थाने बहुवचने ईकारादेशो भवति, दकारस्य स्थाने च मकारादेशो भवति ।
उदा०-(अदस्) अमी। अमीभिः । अमीभ्यः । अमीषाम् । अमीषु।
आर्यभाषा: अर्थ-(असे:) असकारान्त (अदसः) अदस् शब्द के (दात्) दकार से परवर्ती (एत:) एकार के स्थान में (बहुवचने) बहुवचन में (ईत्) ईकारादेश होता है और (दः) दकार के स्थान में (म:) मकारादेश होता है।।
उदा०-(अदस्) अमी। वे सब। अमीभिः । उन सबसे। अमीभ्यः । उन सबके लिये/से। अमीषाम् । उन सबका। अमीषु । उन सब में।
सिद्धि-(१) अमी। अदस्+जस्। अद अ+शी। अद+ई। अद्+ए। अद्+ई। अम्+ई। अमी।
यहां 'अदस्' शब्द से पूर्ववत् जस्' प्रत्यय है। 'त्यदादीनाम:' (७।२।१०२) से अदस् के सकार को अकारादेश और अतो गुणे' (६।१।९६) से पररूप एकादेश है। जस: शी (७।१।१७) से 'जस्' को 'शी' आदेश और 'आद्गुणः' (६।१।८६) से गुणरूप एकादेश एकार होता है। इस सूत्र से एकार को ईकारादेश और दकार को मकारादेश होता है। ऐसे ही भिस्' प्रत्यय में-अमीभिः। 'बहुवचने झल्येत्' (७।३।१०३) से अकार को एकारादेश होता है। 'भ्यस्' प्रत्यय में-अमीभ्यः । 'आम्' प्रत्यय में-अमीषाम् । आमि सर्वनाम्न: सुट्' (७।१।५२) से सुट्' आगम होता है। सुप्' प्रत्यय में-अमीषु ।
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