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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) कुर्यात् । यहां 'डुकृञ् करणे (तना०उ०) धातु से लिङ् प्रत्यय और लकार के स्थान में तिपप्' आदेश है। तनादिकृअभ्य उ:' (३ १ १७९) से 'उ' विकरण-प्रत्यय, 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से धातु को गुण, उरण रपरः' (१।११५१) से रपरत्व, 'अत उत् सार्वधातुके से उकारादेश है। यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३।३।१०३) से यासुट् आगम है। ये च' (६।४।१०९) से उकार का लोप होता है। इस सूत्र से रेफान्त कुर्' शब्द के उपधाभूत इक् (उ) वर्ण को दीर्घत्व का प्रतिषेध होता है। 'छुर छेदने (तु०प०) धातु से-छुर्यात् । उकार-मकारादेशौ- .
(५) अदसोऽसेर्दादु दो मः।८०। प०वि०-अदस: ६।१ असे: ६।१ दात् ५।१ उ ११ (सु-लुक्) द: ६।१ म: १।१।
सo-अविद्यमान: सि:-सकारो यस्य सोऽसि:, तस्य-असे: (बहुव्रीहिः)। असिरित्यत्रेकार उच्चारणार्थ: ।
अन्वयः-असेरदसो दाद् उः, दो म:।
अर्थ:-असे:=असकारान्तस्यादसो दकारत्परस्य वर्णस्य स्थाने उकारादेशो भवति, दकारस्य स्थाने च मकारादेशो भवति।
उदा०-(अदस्) अमुम्, अमू, अमून्। अमुना, अमुभ्याम् ।।
आर्यभाषा: अर्थ-(असे:) असकारान्त (अदस:) अदस् शब्दों के (दात्) दकार से परवर्ती वर्ण के स्थान में (उ:) उकारादेश होता है और (द:) दकार के स्थान में (म:) मकारादेश होता है।
___ उदा०-(अदस्) अमुम् । उसको। अमू । उन दोनों को। अमून् । उन सबको। अमुना। उससे। अमुभ्याम् । उन दोनों से।
सिद्धि-(१) अमुम् । अदस्+अम् । अद अ+अम् । अद+अम् । अदु+अम् । अमु+म्। अमुम्।
यहां ‘अदस्' शब्द से स्वौजसः' (४।१।२) से 'अम्' प्रत्यय है। 'त्यदादीनाम:' (७।२।१०२) से अन्त्य सकार को अकारादेश, 'अतो गुणे (६।१।९६) से पररूप एकादेश होता है। इस सूत्र से इस असकारान्त 'अद' शब्द के दकार से परवर्ती अकार को उकारादेश और दकार को मकारादेश होता है। 'अमि पूर्वः' (६।१।१०५) से पूर्वरूप
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