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अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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आर्यभाषाः अर्थ- (धातोः) धातु की (उपधायाम्) उपधा में (च) भी विद्यमान (र्वो) रेफ और वकार (हलि) हल्परक हैं, उनके ( उपधायाः) उपधाभूत (इक: ) इक् वर्ण को (दीर्घ) दीर्घ होता है ।
उदा०-(हुर्छा ) हूर्छिता । कुटिलता करनेवाला। (मुर्छा ) मूर्च्छिता । मूर्च्छित होनेवाला । (उर्वी) ऊर्विता । हिंसा करनेवाला । (धुर्वी) धूर्विता । हिंसा करनेवाला ।
सिद्धि - (१) हूर्छिता । यहां 'हुर्छा कौटिल्ये' (भ्वा०प०) धातु से 'वुल्तृचौ (३।१।१३३) से 'तृच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'हुर्छ' धातु की उपधा में विद्यमान रेफ के उपधाभूत इक् वर्ण ( उ ) को हल्वर्ण (छ) परे होने पर दीर्घ होता है।
(२) मूर्छिता । 'मुर्छा मोहसमुच्छ्राययो:' ( भ्वा०प० ) । (३) उर्विता । 'उर्वी हिंसार्थ:' ( भ्वा०प० ) । (३) धूर्विता । 'धुर्वी हिंसार्थ:' ( भ्वा०प० ) ।
दीर्घादेशप्रतिषेधः
(४) न भकुर्धुराम् । ७६ ।
प०वि०-न अव्ययपदम्, भ-कुर्-छुराम् ६।३।
स०-भं च कुर् च छुर् च ते भकुर्छुर:, तेषाम् - भकुर्छुराम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु० - धातो:, :, उपधायाः, दीर्घः, इकः इति चानुवर्तते । अन्वयः - र्वोर्भकुर्छुरामुपधाया दीर्घो न ।
अर्थः-रेफान्तस्य वकारान्तस्य च भस्य, कुर् छुर् इत्येतयोश्च धात्वोरुपधाया इको दीर्घो न भवति ।
उदा०-(भम्) धुरं वहतीति धुर्य: । धुरि साधुरिति धुर्य: । ( कुर्) कुर्यात्। (छुर्) छुर्यात्।
आर्यभाषाः अर्थ- (र्व:) रेफान्त और वकारान्त (भ-कुर्-छुराम्) भ-संज्ञक और कुर् तथा छुर् इन (धात्वोः ) धातुओं के (उपधायाः) उपधाभूत (इक: ) इक् वर्ण को (दीर्घ) दीर्घ (न) होता है ।
उदा०- - (भम्) धुर्य: । धुर् (जुआ) को वहने करनेवाला अथवा जुआ में जोतने के लिये समुचित बैल | (कुर्) कुर्यात् । वह करे । (छुर्) छुर्यात् । वह छेदन करे, कतरे । सिद्धि - (१) धुर्य: । यहां 'धुर्' शब्द से 'धुरो यड्ढकौं' (४।४।७७) से वहति अर्थ में 'यत्' प्रत्यय है। 'यचि भम्' (४।१।१८) से धुर् शब्द की 'भ' संज्ञा है। इस सूत्र से रेफान्त तथा भ-संज्ञक 'धुर्' शब्द की उपधा को दीर्घत्व का प्रतिषेध होता है।
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