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________________ अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः ५४१ है । विकल्प - पक्ष में- जीवनट् । यहां 'व्रश्चभ्रस्ज०' (८/२/३६ ) से नश् धातु के शकार को षकार, 'झलां जशोऽन्ते ( ८ / २ / ३९ ) से षकार को जश् डकार और 'वाऽवसाने' (८/४/५५) से डकार को चर् टकार होता है । न-आदेशः (३) मो नो धातोः । ६४ । प०वि० - म: ६ । १ नः १ । १ धातो: ६।१। अनु०-पदस्येत्यनुवर्तते । अन्वयः - मो धातोः पदस्य नः । अर्थ:-मकारान्तस्य धातो: पदस्य नकारादेशो भवति । उदा०- (शम्) प्रशान् । (तम्) प्रतान् । (दम् ) प्रदान् । आर्यभाषाः अर्थ- (म:) मकार जिसके अन्त में है उस (धातो: ) धातु के (पदस्य) पद के अन्त में (न) नकारादेश होता है । उदा० - ( शम्) प्रशान् । शान्त करनेवाला । (तम् ) प्रतान् । तमन्ना ( इच्छा) करनेवाला । (दम् ) प्रदान् । दमन करनेवाला । सिद्धि-प्रशान् । यहां प्र- उपसर्गपूर्वक 'शमु उपशमें' (दि०प०) धातु से 'क्विप् च' (३/२/७६ ) से क्विप्' प्रत्यय है। क्विप्' प्रत्यय का सर्वहारी लोप होता है । इस सूत्र से 'शम्' धातु के मकार को पद के अन्त में नकारादेश होता है। 'अनुनासिकस्य क्विझलो: क्ङिति (६ । ४ । १५) से नकारान्त अङ्ग की उपधा को दीर्घ होता है । नकारादेश के असिद्ध होने से 'नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य' ( ८1२ 1७) से नकार का लोप होता है । न-आदेश: (४) म्वोश्च । ६५ । प०वि० - म्वोः ७ । २ च अव्ययपदम् । सo - मश्च वश्च तौ म्वौ तयो:-म्वोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । " अनु० - म:, न:, धातोरिति चानुवर्तते । अन्वयः - मो धातो म्वोश्च नः । अर्थ:- मकारान्तस्य धातोर्मकारे वकारे च परतश्च नकारादेशो भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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