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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-आधमर्थे विषये ऋणमिति पदं निपात्यते। उदा०-ऋणं ददाति । ऋणं धारयति ।
आर्यभाषा: अर्थ-(अधमर्ये) अधमर्ण कर्जदार विषय में (ऋणम्) ऋण यह पद निपातित है।
उदा०-ऋणं ददाति । साहूकार कर्जा देता है। ऋणं धारयति । कर्जदार कर्ज को धारण करता है।
अधमर्ण के द्वारा कालान्तर में देय और उत्तमर्ण के द्वारा कालन्तर में प्राप्य द्रव्य 'ऋण' कहलाता है।
सिद्धि-ऋणम् । यहां ऋ गतौ' (जु०प०) अथवा ऋ गतिप्रापणयोः' (भ्वा०प०) धातु से नपुंसके भावे क्त:' (३।३।११४) से 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से आधमर्ण्य अर्थ में निष्ठा के तकार को नकारादेश निपातित है। वाo-'ऋवर्णाच्चेति वक्तव्यम् (८।४।१) से णत्व होता है। निपातनम्(२०) नसत्तनिषत्तानुत्तप्रतूर्तसूर्तगूर्तानि छन्दसि।६१।
प०वि०-नसत्त-निषत्त-अनुत्त-प्रतूर्त-सूर्त-गूतानि १।३ छन्दसि ७।१।
स०-नसत्तं च निषत्तं च अनुत्तं च प्रतूर्तं च सूर्तं च गूर्तं च तानिनसत्तनिषत्तानुत्तप्रतूर्तसूर्तगूर्तानि (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।।
अन्वय:-छन्दसि नसत्तनिषत्तानुत्तप्रतूर्तसूर्तगूर्तानीति निपातनम् ।
अर्थ:-छन्दसि विषये नसत्तनिषत्तानुत्तप्रतूर्तसूर्तगूर्तानीत्येतानि पदानि निपात्यन्ते।
उदा०-(नसत्तम्) नसत्तमञ्जसा। (निषत्तम्) निषत्तः (ऋ० १।५८ १३)। (अनुत्तम्) उनुत्तमा ते मघवन् (ऋ० १।१६५ ।९) । (प्रतूर्तम्) प्रतूर्त वाजिन् (तै०सं० ४।१।२।१)। (सूर्तम्) सूर्ता गावः । (गूर्तम् ) गूर्ता अमृतस्य (यजु० ६।३४) ।
आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (नसत्त०) नसत्त, निषत्त, अनुत्त, प्रतूर्त, सूर्त, गूर्त ये पद निपातित हैं।
उदा०-(नसत्तम्) नसत्तमञ्जसा । नसत्तम्-पृथक् न हुआ। भाषा में-नसन्नम् । (निषत्त) निषत्त: (ऋ० ११५८।३)। निषत्त: बैठा हुआ। भाषा में-निषण्णः । (अनुत्त) उनुत्तमा ते मघवन् (ऋ० १।१६५ ।९)। अनुत्तम् आर्द्र कोमल। भाषा में-अनुन्नम्।
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