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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(क्षाय:) झै इस (धातो:) धातु से परवर्ती (निष्ठात:) निष्ठा के तकार के स्थान में (म:) मकारादेश होता है।
उदा०-(1) क्षाम:, क्षामवान् । वह क्षीण होगया।
सिद्धि-क्षामः । यहां 'बै क्षये (भ्वा०प०) धातु से 'निष्ठा' (३।२।१०२) से 'क्त' प्रत्यय है। ‘आदेच उपदेशेऽशिति' (६।१।४४) से धातुस्थ एच् (ए) को आकारादेश होता है। इस सूत्र से 'क्त' के तकार के स्थान में मकारादेश होता है। क्तवतु प्रत्यय में-क्षामवान्। .. मादेश-विकल्पः
(१३) प्रस्त्योऽन्यतरस्याम्।५४। प०वि०-प्रस्त्य: ५।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । स०-प्रपूर्व: स्त्या इति प्रस्त्याः , तस्मात्-प्रस्त्य: (प्रादितत्पुरुषः)। अनु०-निष्ठात:, धातो:, म इति चानुवर्तते। अन्वय:-प्रस्त्यो धातोर्निष्ठातोऽन्यतरस्यां मः।
अर्थ:-प्रपूर्वात् स्त्यायतेर्धातो: परस्य निष्ठातकारस्य स्थाने विकल्पेन मकारादेशो भवति।
उदा०-(प्रस्त्या) प्रस्तीमः, प्रस्तीमवान्। प्रस्तीत:, प्रस्तीतवान्।
आर्यभाषा: अर्थ-(प्रस्त्या) प्र-उपसर्गपूर्वक स्त्या इस (धातो:) धातु से परवर्ती (निष्ठात:) निष्ठा के तकार के स्थान में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (म:) मकारादेश होता है।
उदा०-(प्रस्त्या) प्रस्तीमः, प्रस्तीमवान्। उसने शब्द किया/सङ्घात बनाया। प्रस्तीत:, प्रस्तीतवान् । अर्थ पूर्ववत् है।।
सिद्धि-प्रस्तीमः । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक दृष्ट्यै शब्दसंघातयोः' (भ्वा०प०) धातु से निष्ठा' (३।२।१०२) से 'क्त' प्रत्यय है। आदेच उपदेशेऽशिति (६।१।४४) से धातुस्थ एच् (ए) को आकारादेश होता है। स्त्य: प्रपूर्वस्य' (६।१।२३) से प्र-उपसर्गपूर्वक 'स्त्या' धातु को सम्प्रसारण, 'सम्प्रसारणाच्च (६।१।१०६) से आकार को पूर्वरूप एकादेश और हल:' (६।४।२) से दीर्घ होता है। क्तवतु' प्रत्यय में-प्रस्तीमवान् । विकल्प-पक्ष में मकारादेश नहीं है-प्रस्तीत:, प्रस्तीवान् । यहां प्रथम स्त्य: प्रपूर्वस्य (६।१ ।२३) से सम्प्रसारण होने पर यह धातु आकारान्त नहीं रहती है। क्तवतु प्रत्यय में-प्रस्तीतवान्।
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