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________________ : अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः अर्थ:-शुषो धातो: परस्य निष्ठातकारस्य स्थाने ककारादेशो भवति । उदा०- (शुष्) शुष्कः, शुष्कवान्। आर्यभाषा: अर्थ-(शुष:) शुष् इस (धातो:) धातु से परवर्ती (निष्ठात:) निष्ठा के तकार के स्थान में (क:) ककारादेश होता है।। उदा०-(शुष्) शुष्कः, शुष्कवान् । वह सूख गया। सिद्धि-शुष्कः । यहां 'शुष शोषणे (दि०प०) धातु से 'निष्ठा' (३।२।१०२) से 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से क्त' के तकार के स्थान में ककारादेश होता है। क्तवतु प्रत्यय में-शुष्कवान् । व-आदेशः (११) पचो वः ।५२। प०वि०-पच: ५ ।१ व: १।१। अनु०-निष्ठात:, धातोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-पचो धातोर्निष्ठात: वः । "अर्थ:-पचो धातो: परस्य निष्ठातकारस्य स्थाने वकारादेशो भवति। उदा०-(पच्) पक्व:, पक्ववान्। आर्यभाषा: अर्थ- (पच:) पच् इस (धातो:) धातु से परवर्ती (निष्ठात:) निष्ठा के तकार के स्थान में (व:) वकारादेश होता है। उदा०-(पच) पक्वः, पक्ववान् । उसने पकाया। सिद्धि-पक्व: । यहाँ 'डुपचष् पाके' (भ्वा० उ०) धातु से 'निष्ठा' (३।२।१०२) से क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'क्त' के तकार के स्थान में वकारादेश होता है। क्तवतु प्रत्यय में-पक्ववान् । म-आदेश: (१२) क्षायो मः।५३। प०वि०-क्षाय: ५ १ म: ११ । अनु०-निष्ठात:, धातोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-क्षायो धातोर्निष्ठात: म:। अर्थ:-क्षायो धातो: परस्य निष्ठातकारस्य स्थाने वकारादेशो भवति। उदा०-(१) क्षाम:, क्षामवान् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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