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अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः निपातनम्
(१४) अनुपसर्गात् फुल्लक्षीबकृशोल्लाघाः।५५ । प०वि०-अनुपसर्गात् ५।१ फुल्ल-क्षीब-कृश-उल्लाघा: १।३ ।
स०-न उपसर्ग इति अनुपसर्ग:, तस्मात्-अनुपसर्गात् (नञ्तत्पुरुष:)। फुल्लश्च क्षीबश्च कृशश्च उल्लाघश्च ते-फुल्लक्षीबकृशोल्लाघा: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अन्वय:-फुल्लक्षीबकृशोल्लाघा अनुपसर्गान्निपातनम्।
अर्थ:-फुल्लक्षीबकृशोल्लाघा: शब्दा निपात्यन्ते, न चेदेते उपसर्गाद् उत्तरा भवन्ति।
उदा०-फुल्ल:, फुल्लवान् । क्षीब: । कृशः । उल्लाघः।
आर्यभाषा: अर्थ-(फुल्ल०) फुल्ल, क्षीब, कृश, उल्लाघ ये शब्द निपातित हैं (अनुपसर्गात्) यदि ये शब्द उपसर्ग से परवर्ती न हों।
उदा०-फुल्ल:, फुल्लवान् । उसने तोड़ा। क्षीब: । वह मस्त हुआ। कृश: । वह पतला हुआ। उल्लाघः । वह समर्थ हुआ।
सिद्धि-(१) फुल्ल: । फला+क्त। फल+त। फुल्+ल। फुल्ल+सु। फुल्ल: ।
यहां त्रिफला विशरणे' (भ्वा०प०) धातु से 'निष्ठा' (३।२।१०२) से 'क्त' प्रत्यय है। आतो लोप इटि चं' (६।४।६४) से धातुस्थ आकार का लोप होता है। 'आदितश्च' (७।२।१६) से इडागम का प्रतिषेध और उत्परस्यात:' (७।४।८८) से धातुस्थ अकार को उकारादेश होता है। इस सूत्र से निष्ठा के तकार को लकारादेश निपातित है। क्तवतु प्रत्यय में भी लकारादेश अभीष्ट है-फुल्लवान् ।
(२) क्षीब: । क्षीब्+क्त। क्षीब्+त। क्षीब्+अ। क्षीब+सु। क्षीबः ।
यहां क्षीब मदे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'क्त' प्रत्यय के तकार (त) का लोप निपातित है। तकार लोप को असिद्ध मानकर 'आर्धधातुकस्येड्वलादेः' (७।२।३५) से इडागम प्राप्त होता है, अत: इट् का अभाव भी निपातित है।
(३) कृशः । कृश तनूकरणे (दि०प०) धातु से पूर्ववत् ।
(४) उल्लाघः । उत्-उपसर्गपूर्वक लाघृ सामर्थे (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् । नादेश-विकल्पः
(१५) नुदविदोन्दत्राघाहीभ्योऽन्यतरस्याम्।५६ । प०वि०-नुद-विद-उन्द-त्रा-घ्रा-हीभ्य: ५ ३ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम्।
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