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________________ ५१८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(पदान्ते) द्रुह्-मित्रधुक, मित्रद्रुट । (झलि) द्रोग्धा, द्रोढा। (पदान्ते) मुह-उन्मुक्, उन्मुट् । (झलि) उन्मोग्धा, उन्मोढा । (पदान्ते) ष्णुह्-उत्स्नुक, उत्स्नुट् । (झलि) उत्स्नोग्धा, उत्स्नोढा। (पदान्ते) ष्णिह-स्निक, स्निट। (झलि) स्नेग्धा, स्नेढा। आर्यभाषा: अर्थ-(दुह०) दुह, मुह, ष्णुह, ष्णिह इन (धातूनाम्) धातुओं के (ह:) हकार के स्थान में (पदस्य) पद के (अन्ते) अन्त में और (झलि) झलादि प्रत्यय परे होने पर (वा) विकल्प से (घ:) कारादेश होता है और पक्ष में यथाप्राप्त ढकारादेश होता है। उदा०-(पदान्त) द्रुह्-मित्रधुक, मित्रगुट् । मित्र से द्रोह करनेवाला। द्रोह अभिजिघांसा (मारने की इच्छा)। (झल) द्रोग्धा, द्रोढा । द्रोह करनेवाला। (पदान्त) मुह-उन्मुक्, उन्मुट् । उन्मुग्ध करनेवाला। (झल) उन्मोग्धा, उन्मोढा । उन्मुग्ध करनेवाला। (पदान्त) ष्णुह-उत्स्नुक, उत्स्तुट् । वमन करनेवाला। (झल्) उत्-उत्स्नोग्धा, उत्स्नोढा । वमन करनेवाला। (पदान्त) णिह-स्निक, स्निट् । प्रीति करनेवाला। (झल) स्नेग्धा, स्नेढा। प्रीति करनेवाला। सिद्धि-(१) मित्रधुक् । यहां मित्र-उपपद दुह अभिजिघांसायाम्' (दि०प०) धातु से विप् च' (३।२।७६) से विप्' प्रत्यय है। वरपृक्तस्य' (६।१।६६) से क्विप्' का सर्वहारी लोप होता है। इस सूत्र से पदान्त में विद्यमान दुह्' धातु के हकार को घकारादेश होता है। 'झलां जशोऽन्ते' (८।२।३९) से घकार को जश् गकार और वाऽवसाने (८।४।५६) से गकार को चर् ककार होता है। एकाचो बशो भष्०' (11३७) से 'द्रह' के दकार को धकारादेश होता है। विकल्प-पक्ष में-मित्रद्रुट् । यहां हो ढ:' (८।२।३१) से हकर को ढकारादेश और पूर्ववत् जश्त्व डकार और चवटकार होता है। (२) द्रोग्धा । यहां दुह्' धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से झलादि तृच' प्रत्यय परे होने पर दह' के हकार को घकारादेश होता है। झषस्तथो?ध:' 1८।२।४) से तकार को धकार और खरिच' (८।४।५५) से घकार को गकारादेश होता है। विकल्प-पक्ष में 'द्रुह्' धातु के हकार को हो ढः' (८।२।३१) से ढकारादेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (३) उन्मुक् आदि उत्-उपसर्गपूर्वक 'मुह वैचित्ये' (दि०प०) धातु से पूर्ववत् । (४) उत्स्नुक् आदि उत्-उपसर्गपूर्वक 'ष्णुह उगिरणे' (दि०प०) धातु से पूर्ववत्। (५) स्निक आदि 'ष्णिह प्रीतौ' (दि०प०) धातु से पूर्ववत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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