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________________ ५११ अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः अन्वयः-झल: सस्य झलि लोप: । अर्थ:-झल: परस्य सकारस्य झलादौ प्रत्यये परतो लोपो भवति। उदा०-सोऽभित्त । त्वम् अभित्था: । सोऽछित्त । त्वम् अच्छित्था: । आर्यभाषा: अर्थ-(झल:) झल् वर्ण से परवर्ती (सस्य) सकार का (झलि) झलादि प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोप होता है।। उदा०-सोऽभित्त । उसने विदारण किया, फाड़ा। त्वम् अभित्था: । तूने विदारण किया। सोऽछित्त । उसने छेदन किया, काटा। त्वम् अच्छित्था: । तूने छेदन किया। सिद्धि-अभित्त। भिद्+लुङ् । अट्+भिद+च्लि+ल। अ+भिद्+सिच्+त। अ+भिद्+o+त। अभित्त। यहां भिदिर् विदारणे (रुधा०3०) धातु से लुङ् (३।२।११०) से लुङ्' प्रत्यय है। तिप्तझि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में आत्मनेपद में 'त' आदेश और ले: सिच्' (३।१।४४) से ब्लि' के स्थान में 'सिच्' आदेश है। इस सूत्र से झल् वर्ण (द्) से परवर्ती 'सिच्' के सकार का झलादि 'त' प्रत्यय परे होने पर लोप होता है। 'थास्’ प्रत्यय में-अभित्था: । 'छिदिर् वैधीकरणे' (रुधा०३०) धातु से-अच्छित्त, अच्छित्था:। स-लोपः (१०) हस्वादङ्गात्।२७। प०वि०-ह्रस्वात् ५।१ अङ्गात् ५।१। अनु०-लोपः, सस्य, झलीति चानुवर्तते। अन्वय:-हस्वादङ्गात् सस्य झलि लोप: । अर्थ:-ह्रस्वान्ताद् अङ्गात् परस्य सकारस्य झलादौ प्रत्यये परतो लोपो भवति। उदा०-सोऽकृत । त्वम् अकृथाः । सोऽहृत । त्वम् अहृथाः । आर्यभाषा: अर्थ-(ह्रस्वात्) ह्रस्व वर्ण जिसके अन्त में है उस (अड्गात्) अङ्ग से परवर्ती (सस्य) सकार का (झलि) झलादि प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोप होता है। उदा०-सोऽकृत । उसने किया। त्वम् अकृथाः। तूने किया। सोऽहृत । उसने हरण किया। त्वम् अहृथाः । तूने हरण किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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