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________________ ५१० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् 'अतो ल्रान्तस्य' (७।२।२) से 'क्षर्' को रेफान्तलक्षण वृद्धि होती है। हल्याब्भ्यो दीर्घात्' (६।१।६७) से अपृक्त त्' (तिम्) का लोप और इस सूत्र से रेफ से परवर्ती सिच्’ के सकार का लोप होता है। रेफ को पूर्ववत् विसर्जनीय आदेश है। ऐसे ही सर छद्मगतौ' (भ्वा०प०) धातु से-अत्साः । स-लोपः (८) धि च।२५। प०वि०-धि ७१ च अव्ययपदम्। अनु०-लोपः, सस्येति चानुवर्तते। अन्वय:-धि च सस्य लोपः। अर्थ:-धकारादौ प्रत्यये परतश्च सकारस्य लोपो भवति। उदा०-यूयम् अलविध्वम्, अलविढ्वम् । यूयम् अपविध्वम्, अपवित्वम्। आर्यभाषा: अर्थ-(धि) धकारादि प्रत्यय परे होने पर (च) भी (सस्य) सकार का (लोप:) लोप होता है। उदा०-यूयम् अलविध्वम्, अलविद्वम् । तुम सब ने छेदन किया, काटा। यूयम् अपविध्वम्, अपविढ्वम् । तुम सब ने पवित्र किया। सिद्धि-अलविध्वम् । लू+लुङ्। अट्+लू+चिल+ल। अ+लू+सिच्+ध्वम् । अ+लू+ इट्++ध्वम्। अ+लो+इ+o+ध्वम्। अ+लव् इ+ध्वम्। अलविध्वम्।। यहां लूञ छेदने' (क्रया०उ०) धातु से लुङ्' (३।२।११०) से 'लुङ्' प्रत्यय है। 'तिप्तस्झि०' (३।४ १७८) से लकार के स्थान में ध्वम् आदेश और ले: सिच् (३।१।४४) से 'च्लि' के स्थान में सिच्’ आदेश है। 'आर्धधातुकस्येड्वलादेः' (७।२।३५) से 'इट्' आगम होता है। इस सूत्र से धकारादि 'ध्वम्' प्रत्यय परे होने पर 'सिच्' के सकार का लोप होता है। सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से इगन्तलक्षण गुण और एचोऽयवायाव:' (६।१७७) से 'अव्' आदेश होता है। विभाषेट:' (८।३१७९) से विकल्प-पक्ष में 'ध्वम्' को मूर्धन्य होकर-अलविढ्वम् । 'पूञ् पवने (प्रत्याउ०) धातु से-अपविध्वम्, अपविढ्वम् । स-लोपः (६) झलो झलि।२६। प०वि०-झल: ५ १ झलि ७१। अनु०-लोपः, सस्येति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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