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________________ अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः ५०७ अर्थ:-गृ इत्येतस्य धातो रेफस्य स्थानेऽजादौ प्रत्यये परतो विकल्पेन लकारादेशो भवति। उदा०-स निगिरति, निगिलति। निगरणम्, निगलनम् । निगारकः, निगालकः। आर्यभाषा: अर्थ-(गः) गृ इस धातु के (र:) रेफ के स्थान में (अचि) अजादि प्रत्यय परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (ल:) लकारादेश होता है। उदा०-स निगिरति, निगिलति। वह निगलता है। निगरणम्, निगलनम् । निगलना। निगारकः, निगालकः । निगलनेवाला। सिद्धि-(१) निगिरति। नि+गृ+लट् । नि+गृ+तिम् । नि+गृ+श+ति। नि+गिर्+अ-ति। निगिरति। यहां नि-उपसर्गपूर्वक निगरणे (तु०प०) धातु से वर्तमाने लट् (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। तुदादिभ्यः श:' (३।१७७) से अजादि 'श' (अ) विकरण-प्रत्यय है। 'ऋत इद्धातो:' (७।१।१००) से 'ऋ' के स्थान में इकारादेश और यह उरण रपरः' (१।१।५१) से रपर होता है। विकल्प-पक्ष में रेफ के स्थान में लकारादेश है-निगिलति। (२) निगरणम् । यहां नि-उपसर्गपूर्वक गृ' धातु से 'ल्युट च' (३।३।११५) से भाव अर्थ में अजादि ल्युट्' (अन) प्रत्यय है। 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से गृ' धातु को इगन्तलक्षण गुण और पूर्ववत् रपरत्व होता है। विकल्प-पक्ष में रेफ के स्थान में लकारादेश है-निगलनम्। (३) निगारकः । यहां नि-उपसर्गपूर्वक गृ' धातु से ‘ण्वुल्तृचौ' (३।१।१३३) से अजादि ‘ण्वुल्' (अक) प्रत्यय है। 'अचो मिति' (७।२।११५) से 'गृ' धातु को अजन्तलक्षण वृद्धि और पूर्ववत् रपरत्व होता है। विकल्प पक्ष में रेफ के स्थान में लकारादेश है-निगालकः। लकारादेशविकल्प: (५) परेश्च घाङ्कयोः ।२२। प०वि०-परे: ६१ च अव्ययपदम्, घ-अङ्कयो: ७।२। स०-घश्च अकश्च तौ घाड्कौ, तयो:-घाङ्कयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-र:, ल:, विभाषेति चानुवर्तते। अन्वय:-परेश्च रो घाङ्कयोर्विभाषा लः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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